ऐसे उद्योग धंधे, जिनमें मशीन और पूंजी की प्रधानता न होकर श्रम की प्रधानता हो, कुटीर-उद्योग कहलाता है। कुटीर-उद्योग के लिए बड़ी पूंजी, बड़े भूखण्ड एवं बड़े बाजार की आवश्यकता नहीं होती। एक परिवार या आस-पड़ोस के लोग भी मिलकर इसे घर में ही चला सकते हैं।
किसी देश की आर्थिक सम्पन्नता और खुशहाली में कुटीर-उद्योगों का विशेष योगदान रहता है। जापान के बारे में कहा जाता है कि यहां का हर घर लद्यु उद्योग का एक केन्द्र है। हमारी पुरानी सामाजिक व्यवस्था में भी लघु उद्योगों का बड़ा महत्व था। कृषि के अतिरिक्त ग्रामीण जनता छोट-छोटे उद्योगों में लगी हुई थी। मोची, जूता, बढ़ई लकड़ी के सामान, कुम्हार मिटी के बर्तन, तेली कोल्हू से तेल आदि तैयार करते थे। फलतः हमारे पुराने गांव स्वावलम्बी एवं सुखी थे।
वर्तमान युग मशीन का हो गया है। अब लोब मोची के जूते की जगह मल्टीनेशनल कम्पनियों के जूते पसंद करते हैं; कोल्हू से निकाले गए तेल न पसंद कर मिल से निकलकर आने वाला तेल पसंद करते हैं; हैंडलूम वस्त्रों के बदले सिन्थेटिक कपड़े पहनना ज्यादा पसंद करते हैं। यही कारण है कि कुटीर उद्योगों में लगे सैकड़ों-हजारों हाथ बेकार हो गए है। बड़ी-बड़ी मशीनो की चिमनियों से निकलने वाले धुएं एवं कचरों से पर्यावरण प्रदूषित हो गया है। इस प्रकार अन्धाधुन्ध मशीनीकरण से बेरोजगारी भी बढ़ी है और प्रदूषण भी बढ़ा है। इन दोनों समस्याओं को कुटीर-उद्योग की स्थापना कर कुछ हद तक सुलझाया जा सकता है। इसके लिए घर-घर में कुटीर-उद्योगों का जाल बिछाना होगा, यथा-मधुमक्खी-पालन, चमड़ा-अद्योग, डेयरी-फार्म, हस्तकरघा-उद्योग, लकड़ी एवं मिटी के खिलौने, रेडीमेड कपड़े, पापड़-उद्योग, जेली-उत्पादन, विभिान्न प्रकार के अचार, मुर्गी- पालन, मछली-पालन इत्यादि। सरकार को इन कुटीर-अद्योगों के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। बहुधा यह देखा जाता है कि बड़े उद्योगों की स्थापना से छोटे उद्योग मृतप्राय हो जाते हैं, जैसे बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को निगल जाती हैं।
आज भारत एक विकासशील देश है। इसके पास पूंजी का अभाव है। यह इतनी सामथ्र्य नहीं रखता कि बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना कर सके। लेकिन इसके पास अपार जनसंख्या है। अतः भारत जैसे आर्थिक दृष्टि से कमजोर एवं अपार जनसंख्या वाले देश के लिए कम पंूजी पर आधारित कुटीर उद्योग-धंधे आर्थिक-विकास की रीढ़ साबित हो सकते हैं। इससे बढ़ती बेरोजगारी को भी कम किया जा सकता है।
कुटीर उद्योग भारत जैसे देश के लिए बहुत आवश्यक है। कुटीर अद्योगों के विकास से कम-से-कम ग्रामीण क्षेत्रों का विकास तो तय है।
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