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Monday, January 28, 2019

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, karat abhyas jadmati hot sujaan 400 words hindi essay

January 28, 2019

                कवि ने कहा है-    करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते, सिल पर पड़त निसान।
                अर्थात् कुएँ के पत्थर पर बार-बार रस्सी को खींचने से निशान पड़ जाते हैं, इसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने से मूर्ख व्यक्ति भी बुद्विमान हो सकता है।  पत्थर जैसा कठोर पदार्थ भी अगर बार-बार रस्सी खींचने से चिकना हो सकता है तो फिर अभ्यास और सुदृढ़ निश्चय से मनुष्य की अल्प या कुठित बुद्वि का विकास क्यों नहीं हो सकता। अतः अभ्यास मानव जीवन के लिए उस महामंत्री के समान है जो असफलता को सफलता में और निराशा को आशा में बदल सकता है।
                 नन्ही सी चींटी भोजन का ग्रास ले जाने के लिए परिश्रम करती है। अनेकों बार दाना उसके मुँह से छूटता है जिसे वह बार-बार उठाती है और आगे बढ़ती है, वह हार नहीं मानती, निराश नहीं होती बल्कि परिश्रम करती रहती है और अंत में अपने बिल तक पहुँच ही जाती है।  जब पशु-पक्षी परिश्रम से अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में समर्थ हो सकते हैं तो मानव की बुद्वि सम्पन्न, चेतना संपन्न और क्रियाशील प्राणी है। उसके लिए भला कोई भी कार्य असंभव कैसे हो सकता है। इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जिन्होने अभ्यास और परिश्रम के बल पर अपने जीवन में सफलता प्राप्त की। 
                सभी कार्य उद्योग करने से ही सिद्व होते हैं, केवल मनोरथ से नहीं। सोये हुए शेर के मुँह में अपने आप पशु प्रविष्ट नहीं हो जाते बल्कि उसे भी जागकर अपने शिकार के लिए, भोजन के लिए परिश्रम करना पड़ता है।  भोजन को प्राप्त करने के लिए मानव को कर्म करना ही पड़ेगा। इसीलिए इस पृथ्वी को कर्म भूमि कहा गया है क्योंकि कर्म ही सृष्टि का आधार है।
                प्राचीन काल में न तो मानव ने इनती उन्नति की थी न ही पृथ्वी आज के समान थी। धीरे-धीरे मानव ने अपने प्रयत्नों से इसे सुन्दर बनाया। रहने योग्य मकान और भवनों का निर्माण किया तथा सभी प्रकार की भौतिक सुविधाओं को अपने लिए जुटाया। कर्म के कारण ही आज विश्व इस प्रकार प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है।
 तुलसी ने कहा है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है वैसा ही फल भी पाता है। कर्म विहीन मानव जीवन निष्क्रिय हो जाता है, कर्म केवल शारीरिक या सांसरिक सुखों की ही पूर्ति के लिए आवश्यक नहीं है बल्कि मानसिक, बौद्विक और आध्यात्मिक विकास के लिए भी कर्म उतना ही आवश्यक है। वास्तव में मानवजीवन का लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति करना है, जो कर्म के बिना संभव नहीं। इस प्रकार शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक तीनों प्रकार के सुखों के लिए कर्म आवश्यक है।

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