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Saturday, December 21, 2019

मनोरंजन के साधन Manoranjan Ke Sadhan 764 words

December 21, 2019

मानव स्वभाव ही आनंद-मनोरंजन प्रिय है। यों भी सुखद और स्वस्थ जीवन जीने के लिए जिस प्रकार अन्न, पानी और हवा आवश्यक है, उसी प्रकार स्वस्थ मनोरंजन के लिए सुभ क्षण भी परामावश्यक है। मनुष्य कोल्हू का बैल बना रहकर स्वस्थ-सुखी जीवन नहीं जी सकता। तन की थकान मिटाने के लिए जिस प्रकार आराम और नींद आवश्यक है, उसी प्रकार मन-मस्तिष्क भी आवश्यक है। सृष्टि के आरंभ में ही मनुष्य ने इस व्यावहारिक सत्य को पहचान लिया था और मनोरंजन के नित नए साधनों की खोज एंव अविष्कार भी करना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप आज के इस वैज्ञानिक युग तक पहुंचते-पहुंचते मानव समाज के पास स्वस्थ आनंद और मनोरंजन के घरेू एंव बाहरी स्थूल-सूक्ष्म कई प्रकार के साधन और उपकरण हो गए हैं।
प्राचीन काल का जीवन सीमित था, अत: उस समय मनोरंजन के साधन भी सीमित ही थे, फिर भी थे अवश्य और अनंन। प्रकृति के खुले वातावरा में भ्रमण करना, शिकार खेलना, सामूहिक नृत्य गान, अनेक प्रकार के उत्सवों-त्योहारों की परिकल्पना, दीवारों पर चित्र बनाना, ग्रामीण ढंग के कबड्डी, कुश्ती आदि के खेल, पशु-पक्षियों का द्वंद कराना आदि परंपरागत या प्राचीन युग के मनोरंजन के साधन कहे जा सकते हैं। नृत्य-गान की सामूहिक परंपरा से जहां नौटंगी, रास लीला, रामलीला या स्वांग भरने की कला का विकास हुआ, आगे चलकर वह नाटक और आज के सिनेमा या दूरदर्शन पर प्रदर्शित चलचित्रों के रूप में विकास पा सका आदि सभी मनोरंजन के साधनों की विकसित परंपरा में ही आते हैं। इसी प्रकार सामान्य स्तर के खेलों ने ही ज्ञान-विज्ञान की सहायता से विकसित होकर आधुनिक खेलों का स्वरूप धारण कर लिया है कि जो आज के जीवन के सिनेमा आदि के समान ही प्रमुख मनोरंजन के साधन और उपकरण माने गए हैं। सभ्यता के विकास के साथ-साथ पहले चौपड़ और शतरंज जैसे खेल भी खेले जाने लगे थे कि जिन्हें आज नव विकसित रूप में अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का महत्व प्राप्त हो चुका है।
इस प्रकार अनेक तरह के खेल-कूद, नाटक, नृत्यगान, सिनेमा, रेडियो, दूरदर्शन, अनेक प्रकार की प्रदर्शनियां, त्योहार-उत्सव, मेले, हाट -बाजार और देश-विदेश का भ्रमण, होटल और रेस्तरां आदि तो कई तरह के मनोरंजन के साधन माने ही जाते हैं। आज इन सबकी भरमार भी हो गई है, पर इनके अतिरिक्त भी कुछ ऐसी बातें या कार्य हैं, जिन्हें मनोरंजन का उत्तम उपकरण या साधन स्वीकारा जा सकता है। पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं का निरंतर अध्ययन भी आनंद और मनोरंजन का एक श्रेष्ठ एंव सर्वसुलभ साधन कहा जा सकता है। ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अध्ययन के आनंद-मनोरंजन की तुलना में अन्य किसी भी बात को महत्व नहीं दिया करते। कुछ लोग कला साधना को भी मनोरंजन का एक साधन मान उसी में निरत हो जाया करते हें। इसी प्रकार कुछ लोग समाज-सेवा के कार्यों में ही आनंद पाते हैं। कनरसिया और बतरसिया लोगों की भी कमी नहीं है। ऐसे लोगों के पास अन्य किसी साधन के प्रयोग की फुर्सत ही नहीं रहा करती, आवश्यकता ही नहीं होती। मतलब मनोरंजन से है, साधन कोई भी क्यों न हो। आज अपने स्वभाव और रुचि के अनुकूल हर व्यक्ति उपयुक्त साधन जुटा ही लिया करता है।
उद्यानिका मनाना, नदियों में नौका-विहार करना या नौकायन-प्रतियोगितांए भी अब हमारे मनोरंजन के उपकरणों-साधनों में सम्मिलित हो गई हैं। आजकल पहाड़ों की बर्फानी चोटियों पर चढऩा, लंबी-लंबी दुर्गम यात्रांए करना भी कई लोगों के लिए मनोरंजन के कारण बन गए हैं। इसी प्रकार घुड़दौड़, मोटर एंव मोटर-साइकिल दौड़ आदि और विदेशों में विकसित हो रहे जल-थल के कई प्रकार के खेल-ये सब किसलिए? प्रश्न का उत्तर है कि सभी कुछ मानव-मात्र के स्वस्थ मनोरंजन के लिए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों की जो प्रतियोगितांए की जाती हैं, उनका उद्देश्य भी स्वस्थ मनोरंजन और प्रेम-भाईचारे आदि का विस्तार रहा करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि आज हम जिस विविधताओं से भरे युग में जी रहे हैं, उसमें स्वस्थ मनोरंजन के भी अनेक प्रकार के उपकरण उपलब्ध हैं। हर रुचि का व्यक्ति इच्छित उपकरण का उपयोग कर सकता है। इच्छित रंजक कार्य एंव गतिविधियों में उनसे संबधित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग भी ले सकता है।
संसार में जो कुछ भी है, वह मनुष्य के द्वारा और मनुष्य के लिए ही बनाया गया है। मनोरंजन के विभिन्न साधन भी मनुष्यों के लिए ही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि उन सबका प्रयोग रुचिपूर्ण ढंग से, उचित मात्रा में किया जाए। अति जैसे खाने-सोने या अन्य किसी कार्य में वर्जित है, उसी प्रकार मनोरंजन के क्षेत्र में भी वर्जित है। जहां और जितने तक मानव जीवन सुखी, स्वस्थ, शांत और आनंदमय रह सके, मनोरंजन और उसके साधनों का उपयोग भी वहीं तक सीमित रहना चाहिए। अति विनाश की सूचक है और मानव-जाति ने अभी विनष्ट नहीं होना है। स्वस्थ-मनोरंजक जीवन जीकर प्रगति के अनेक पड़ाव पार करने और निरंतर करते रहने हैं। यही जीवन और प्रकृति दोनों का नियम है।

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