आदर्श विद्यार्थी
Adarsh Vidyarthi
सामान्य रूप से इस मनुष्य जीवन के चार भाग या अवस्थांए मानी गई हैं। शैशव के सुकुमार क्षण बीतते विद्यार्थी-जीवन का आरंभ हो जाया करता है, जिसे मनुष्य जीवन की सबसे बढक़र अच्छी और आदर्श अवस्था स्वीकार किया गया है। लेकिन दुख एंव खेद के साथ मानना और कहना पड़ता है कि आज का विद्यार्थी अपने मान्य आदर्शों की राह से भटककर स्वंय अपने, अपने घर-परिवार और सारे समाज के लिए एक प्रकार का असहनीय बोझ बनता जा रहा है।आदर्शविहीन जीवन यों भी बेकार एंव असफल ही स्वीकार किया जाता है। विद्यार्थी काल में तनिक-सा परिश्रम करके ही कोई व्यक्ति स्वंय तो आदर्श बन ही सकता है, बाकी सभी के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है। इसलिए विद्याथर््ीा जीवन को निर्माण का काल या जीवन कहा जाता है।
आदर्श विद्यार्थी हमेशा अपने सहपाठियों-साथियों की सहायता करने को तत्पर रहा करता है। किसी की सहायता करके उसे घमंड नहीं, बल्कि आत्मिक शांति मिला करती है। वह अपने गुरुजनों, बड़े-बूढ़ों के प्रति हमेशा नम्रतापूर्वक सम्मान का व्यवहार करने वाला होता है।
आदर्श विद्यार्थी अपना हर काम पूरे मनोयोग के साथ उचित समय और स्थान पर किया करता है। वह सुबह समय पर उठकर सुबह की क्रियाओं से निवृत होकर, नहा-धोकर अच्छा नाश्ता करता है। स्कूल जाने का समय न हुआ हो तो थोड़ा पढ़-लिख लेता है। समय पर स्कूल-कॉलेज जाता, हर विषय की कक्षा में ध्यान से पढ़ता-लिखता, ध्यान से पढ़े-लिखे का स्मरण करता है। अपने आराम और मनोरंजन का भी खाने-पीने और पढऩे-लिखने की तरह ही उचित ध्यान रखा करता है।
आदर्श विद्यार्थी और व्यक्ति बेकार की गपबाजी में अपना तथा दूसरों का समय बरबाद नहीं किया करता। दूसरों के कामों में नाहक दखल नहीं देता। सिनेमा-दूरदर्शन के पीछे पड़े रह अपनी आंखें, स्वास्थ्य और समय को नष्ट नहीं होने देता।
आदर्शन विद्यार्थी का स्वप्नशील होना भी आवश्यक है। पर उसमें उन सपनों को सत्य, सजीव, साकार करने की लगन, प्रयास एंव सक्रियता भी रहनी चाहिए।
आदर्श विद्यार्थी अहंकार-पीडि़त कभी नहीं होता, वह समय और स्थिति को पहचानकर ही अपना प्रत्येक कार्य किया करता है। सभी की सेवा-सहायता और सत्कार्य करने के लिए तत्पर रहा करता है। बेकार की बातों और कामों की तरफ उसका ध्यान कभी नहीं जाता। शिक्षा एंव जीवन में करणीय हर कार्य के लिए उसके मन में आनंदोत्साह भरा रहा करता है। अपने देश-जाति के प्रत्येक प्रतीक को अपना मान उसकी रक्षा-संवद्र्धना को कर्तव्य मानता है। हर प्रकार से ‘आम-गौरव’ के भाव से भरा रहना ही आदर्श विद्यार्थी का व्यक्त स्वरूप एंव सदलक्षण भी है।
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