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Saturday, December 28, 2019

आज के गांव Aaj Ke Gaon hindi essay 471 words

December 28, 2019


आरंभव से ही यह मान्यता चली आ रही है कि भारत गांव-संस्कृति प्रदशन देश है। फिर भी गांव का नाम सुनते ही आपस में, दो सर्वथा विरोधी चित्र हमारे सामने उभरकर आ जाते हैं। एक चित्र तो बड़ा ही सुंदर और सुहावना प्रतीत होता है, जबकि दूसरा एकदम कुरूप और भद्दा। पहले चित्र के अनुसार गांव कच्चे-पक्के पर साफ-सुथरे घरों का एक ऐसा समूह बनकर उभरता है कि जिनके आस-पास असीम हरियाली, प्रकृति के सुंदर-सुंदर दृश्य, पनघट, चौपालें, उनमें बैठकर हुक्का गुडगुड़ाते ओर बातें करते हुए साफ-सुथरे खुशहाल लोग और खुशहाल पर्यावरण आदि दिखने लगते हैं।   निश्चय ही भारत में ऐसे गांव हुआ करते थे, पर यह बहुत पुरानी, कई सौ वर्षों पहले के भारतीय गांवों की कहानी हैं,

गांव का दूसरा कुरूप और भद्दा चित्र उसके बाद का है। वहां ऊबड़-खाबड़ धुंध-धुंए से भरी मटमैल झौंपडिय़ां हैं। हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य के नाम पर गांवों से कुछ हटकर खेत तो हैं, पर गांव के ठीक बाहर गंदगी और कूड़े के ढेर लग रहे हैं। रास्तें गंदे और कीचड़ के कारण दलदले हैं।  चौपालों का नाम तक नहीं रह गया। मरियल से पशु हैं जो मालिकों के समान ही किसी प्रकार जीवन जिए जा रहे हैं।सामंतो की परंपरागत सभ्यता के शोषण का शिकार वहां का आदमी आज भी गंदे माहौल में रहकर आदमी होने का भ्रम मात्र ही पाले या बनाए हुए हैं।



समय के साथ-साथ इन दोनों परस्पर विरोधी चित्रों के विपरीत आज के भारतीय गांव का चित्र काफी कुछ बदल रहा है। वहां के आम आदमी की दशा भी बदल रहे हैं।आज गांव में सभी प्रकार की शिक्षा का भी प्रचार हो रहा है। छोटे-मोटे उद्योग धंधे भी स्थापित हो रहे हैं।मतलब यह है कि आज का गांव एकदम बदल गया है और बदल रहा है। परंतु यह बदलाव नगरों, राजपथों के आस-पास के गांवों में ही आ गया है, दूर-दाज के गांवों में प्राय: कहीं नहीं।

 हमारी परंपरागत सभ्यता-संस्कृति जो गांवों में जीवित चली आ रही थी, प्राय: विलुप्त होती जा रही है। खेतों की फसली हरियाली उजड़ चुकी है। उसे गांव वालों ने बेच-बाचकर या तो धन कमा लिया या कमा रहे हैं।   लोगों में पहले जैसा अपनापन, प्रेम और भाईचारा भी कतई नहीं रह गया। इतनी आधुनिकता आ जाने पर भी छोटी-बड़ी मानवीयता का भेदभाव शायद आज पहले से भी कसकर सजह मानवीयता का गला घोंट रहा है। घृणा, हिंसा और अलगाव के भाव पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गए हैं।

इस प्रकार आज के गांव भौतिक परिवर्तन, प्रगति और विकास के पथ पर अग्रसर तो विश्य है। पर जिसे हम भारतीय और गांव संस्कृति कहा करते थे, जिसे ग्रामत्व या किसी भी प्रकार सुखद और उत्साहवर्धक स्थिति नहीं कहा जा सकता। काश, आधुनिकता के साथ-साथ हम उस अच्छे परंपरागत गांव की रक्षा कर पाते। तब आज भी गर्व के साथ कह सकते कि भारत कृषि-प्रधान, ग्राम संस्कृति वाला समृद्ध या उन्नत देश है।

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