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Saturday, December 21, 2019

महाविद्यालय का पहला दिन Mahavidyalaya Ka Pahla Din 956 words

December 21, 2019
महाविद्यालय का पहला दिन
Mahavidyalaya Ka Pahla Din
जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तो महाविद्यालयों (कॉलेजों) में पढऩे वाले छात्रों को बड़ी उत्सुकता और गौर से देखा करता था। कई बार सोचता, वह दिन कब आएगा, जब मैं मनचाहे कपड़े पहन, किताबों के भारी बस्ते के बोझ से छुटकारा पाकर केवल हाथ लटकाए हुए ही महाविद्यालय में जाया करूंगा। वहां से आकर अपने छोटे बहन-भाइयों और स्कूल के जूनियर सहपाठियों पर रोब झाड़ा करूंगा कि आज यह किया वह किया वगैरह।  जब बारहवीं कक्षा की परीक्षा दी, बाद में परिणाम आने पर मैं अच्छे अंक लेकर उतीर्ण हो गया, तो बड़ी खुशी हुई। बाद में थोड़ी भाग-दौड़ करने पर एक महाविद्यालय में इच्छित विषय में प्रवेश भी मिल गया। सो मैं स्कूल के सीमित और घुटनभरे वातावरण से निकल कॉलेज के खुले और स्वतंत्र वातावरण में जाने की तैयारी करने लगा। वर्दी से अब छुटकारा मिल गया था, सो मैंने कई बढिय़ा कपड़े सिला लिए। मन में भी अब मैं नए भाग और विचार संजोने लगा कि किस प्रकार महाविद्यालय में जाकर पढूंगा-लिखूंगा तो अवश्य, पर स्वतंत्रता का सुख भोगते हुए शान से रह भी सकूंगा।
आखिर वह दिन आ ही गया। 16 जुलाई का दिन, जब दिल्ली विश्वविद्यालय और उसके महाविद्यालय गर्मियों की छुट्टियों के बाद खुलते हैं। मैंने इच्छित कपड़े पहने, बाल संवारे और कई बार अपना चेहरा दर्पण में देखा। सच, मुझे अपना चेहरा पहले से कहीं सुंदर और आकर्षक लगा रहा था। मुझे बार-बार शीशा देखते देख मेरी स्कूल में पढऩे वाली बहन ने कहा-आज पहली बार कॉले जा रहे हो। देखना भैया, कहीं अपनी ही नजर न लग जाए। ‘हट पगली’ कहकर मैंने उसकी बात हंसी में उड़ा दी और सीटी बजाता हुआ कॉलेज की तरफ चल दिया। कॉलेज के गेट पर पहुंचते ही अनुभव हो गया कि वहां का वातावरण काफी गरम है। चारों और ताजा दम लडक़े-लड़कियों की भीड़ सी उमड़ रही थी। उनकी हंसी और कहकहे सारे वातावरण में गूंज रहे थे। 
बाहर से ही मैंने अनुभव किया कि सीनियर छात्र-छात्रांए नए आने वालों पर चोरी-छुपे नजर रख रहे थे। नए आने वालों को वे लोग झट ताड़ लेते और फिर ‘नया पंछी’ कहकर उनमें कुछ इशारेबाजी होने लगती। बस, कुछ ही क्षण बाद वह नवागंतुक घिर जाता और पता न चल पाता कि उसके साथ फिर क्या हुआ? मैंने कुछ दबे-सहमे ढंग से एक बड़ी ही सुंदर लडक़ी को गेट में घुसते देखा।  मेरे देखते-देखते छात्र-छात्राओं की टोलियां कई नवागंतुक छात्रों के साथ भी हो रहा था। जो हो, पर सब देखकर मन में एक अनजाना डर सा पैदा हो गया। हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि गेट के भीतर जाऊं। एक बार तो जी आया कि वापिस लौट आऊं। फिर सोचा, आखिर कब तक बचा रह सकूंगा। जब इसी विद्यालय में पढऩा है तो आज या कल भीतर तो जाना ही है। अत: जो कुछ भी होना है, क्यों न आज ही भुगत लूं? सोचकर दो कदम आगे बढ़ा, पर सामने छात्र-छात्राओं की टोलियों में नए सिरे से घिरे छात्र-छात्रा को देखकर कदम फिर रुक गए।
सोच में ही क्षण बीत गए। तभी गेट के बाहर आकर छात्रों की एक टोली ने मुझे घेर लिया। उनमें से एक दाढ़ी वाले ने जरा रोबीले स्वर में कहा-क्यों बे हीरो के बच्चे। देख रहा हूं, कब से यहां खड़े लड़कियां ताक रहे हो-क्यों। सुनकर मेरे होश उडऩे लगे। मैंने ‘न-नहीं ऐसी बात नहीं।’ कहकर विरोध करना चाहता, तो उसने फिर कहा ‘तो इतनी देर से यहां खड़े क्या कर रहे हो?’ मैंने सच बताना ही उचित समझा कहा ‘महाविद्यालय में नया दाखिल हुआ हूं।’ सुनकर वह बीच में बोल उठा। ‘ओ नए पंछी हो।’ कहकर उसने साथियों की तरफ देखा और फिर घूरते हुए कहा ‘तो भीतर क्यों नहीं आते हीरो। तुम्हे पढ़ाने के लिए क्या गेट के बाहर स्पेशल क्लास लगानी होगी?’ सुनकर सभी हंसने लगे। मुझे लेकर वे लोग महाविद्यालय भवन के पीछे वाले मैदान में पहुंचे। मैंने देखा, वहां पहले से ही कई बेचारे मेरे जैसे परेड कर या चक्कर लगा रहे थे। मुझे पहले कमीज उतारने के लिए कहा गया। वैसा करने पर आदेश मिला कि दौड़ लगाना सेहत के लिए अच्छा होता है, इसलिए पूरे मैदान का चक्कर लगाकर आऊं। मजबूरत मुझे वैसा करना पड़ा।’
मुझे चुप देख उन्होंने कैंटीन के बैरा को बुलाया और कहा ‘यह साहब जो ऑर्डर देते हैं, हम सबके लिए जल्दी से लेगर आओ, गिन लो, कम न पड़े।’ उन लोगों के बार-बाहर कहने पर मजबूरी में मुझे कुछ ऑर्डर देना पड़ा। कुछ ही देर में बैरा वह सब ले आया वे लोक स्वाद ले-लेकर खाने और मेरी तारीफ करने लगे। खा चुकने के बाद सभी ने मेरी तरफ देखा और मेरा हाथ अपने आप ही जेब की तरफ चला गया। इससे पहले कि मैं रुपयों के साथ हाथ बाहर निकालता, एक ने कहा ‘ठहरो पहले हम सबके पैर छूकर प्रणाम करो’ मुझे करना पड़ा। तब सभी ने मुझे आशिर्वाद दिया। मैंने आश्चर्य से देखा और सुना वे सभी कह रहे थे ‘बच्चे, हमेशा याद रखान विद्या के इस मंदिर को हमने रेकिंग के गलत तरीके अपनाकर गंदा और बदनाम नहीं करना है। सीनियर होने के कारण अगले साल हम लोग यहां से चले जाएंगे। तब तुम सीनियर हो जाओगे। क्या समझे? और फिर वे बारी-बारी मुझे गले लगाने लगे।’ मैंने देखा, हमारे आपस बास बैठी अन्य टोलियां भी यही सब कह और कर रही थीं। वे लोग मुझे प्यार से समझाते-बुझाते रहे। खाने-पीने का सारा बिल भी उन्होंने चुकाया। फिर वे मुझे उस हाल तक पहुंचा गए, जहां प्राचार्य महोदय को नवागंतुक छात्र-छात्राओं को पहले दिन संबोधित करना था। मेरा मन अनजाने ही बार-बार भर-भर आ रहा था।
मैंने सुन रखा था कि महाविद्यालयों में पहले दिन नवागंतुकों की बड़ी दुर्गत की-कराई जाती है। परंतु मेरे साथ जो हुआ, वह सचमुच मेरे लिए हमेशा सुखद प्रेरणा का स्त्रोत बना रहा है। आज भी उसे याद करके मैं रोमांचित हुए बिना नहीं रह पाता।

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