वर्तमान युग में मनुष्य का जीवन बड़ा ही संघर्षमय होता जा रहा है। उसके जीवन में कुछ ही क्षण ऐसे आते हैं, जब वह नाममात्र का संतोष अनुभव कर पाता है। वे होते हैं, मनोरंजन के क्षण।
प्राचीनकाल में जबकि मनुष्य का समाज इतना विकसित नहीं था, उस समय भी वह मनोरंजन करता था। जंगली जातियां भी नाना प्रकार के नृत्यों और गीतों से अपना आनंद बनाती हैं। अंतर इतना है कि प्राचीन युग में ये साधन कम मात्रा में थे। सभ्यता का विकास जितनी तीव्र गति से हुआ, उसी के साथ हमारे मनोरंजन के साधनों का विकास भी हुआ। आज हमारे पास मनोरंजन की इतनी विपुल सामग्री है कि उसका उपयोग करना भार होता जा रहा है।
समाज में मनोरंजन के साधनों का बाहुल्य है। संगीत, अभिनय, नृत्य, चित्रकला आदि से मानव मन को शांति मिलती है। हम आनंद का अनुभव करते हैं। कानों को प्रिय लगनेवाला गीत कौन नहीं चाहता। नाटकों को देखने कौन नहीं जाता। गरमी में आग बरसाती हुई हवाओं के बीच बैठक में बैठकर हम ताश या शतरंज का आनंद लेते हैं। जाड़े की ऋतु में टेनिस बैडमिंटन, फुटबाल, हॉकी और क्रिकेट तन-मन में स्फूर्ति का संचार करते हैं।
अनेक प्रकार के मेलों का आयोजन होता है। मेलों में आनंद-प्राप्ति के साथ-साथ हमारा व्यावहारिक ज्ञान भी बढ़ता है। देशाटन करने पर ीाी चित्त को शांति और भिन्न-भिन्न स्थानों रीति-रिवाज एंव आचार-विचारों का ज्ञान होता है। बुद्धिजीवी वर्ग साहित्य का अध्ययन-मनन कर असीम आनंद उठाता है। विज्ञान के युग में सबसे प्रिय मनोरंजन के साधन हैं-सिनेमा, रेडियो, टेलिविजन, वीडियो आदि। दिन भर की थकावट दूर करने के लिए श्रमिक वर्ग शाम को फिल्म देखकर या रेडियो सुनकर आनंद उठाता है। रेडियो तो मनांरेजन का जादूई बक्सा है। यह मनोरंजन के साथ-साथ घर बैठे ही देश-विदेश के समाचार सुनाता है।
मनोरंजन मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। मनोरंजन के बिना जीवन अधूरा है। जैसे भोजन शरीर को स्वस्थ बनाता है वैसे ही मनोरंजन मस्तिष्क की थकान दूर कर शांति देता है। अत: जीवन में मनांरेजन नियमित रूप से होना चाहिए। लेकिन अधिक माता में मनारंजन हानिकारक है। मनोरंजन केवल जीवन में उल्लास लाने के लिए है। इसी उद्देश्य से इसका उपयोग करना उचित है।
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