अच्छा स्वास्थ्य महावरदान
या
अच्छे स्वास्थ्य के लाभ acche swasthya ke laabh hindi essay
अंग्रेजी में एक कहावत है स्वास्थ्य ही सच्चा धन है। ध्यान से, व्यवहार की दृष्टि से वचिार करने में स्पष्ट हो जाता है कि कहावत में कही गई बात एकदम सत्य है। स्वस्थ व्यक्ति ही इस संसार और जीवन में इच्छित कार्य पूरे कर सकता है। जो चाहे, बन सकता है। जहां चाहे, जहा सकता है। जो भी इच्छा हो, खा-पीकर जीवन का हर आनंद प्राप्त कर सकता है।
आज तक संसार में छोटे-बड़े जितने प्रकार के भी कार्य हुए हैं वे स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन-मस्तिष्क वाले सबल व्यक्तियों द्वारा ही किए गए हैं। कहावत प्रसिद्ध है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन-मस्तिष्क और आत्मा का निवास हुआ करता है। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति ही उन्नति करने, ऊंचा उठने की कल्पनांए कर या विचार बना सकता हे। स्वस्थ मस्तिष्क या बुद्धि वाला व्यक्ति ही उन कल्पनाओं और विचारों को पूरा करने के लिए उपाय सोचकर साधन जुटा सकता है। इसके बाद शरीर के स्वस्थ रहने पर ही साधनों और उपायों से काम लेकर वे सारे कार्य किए जा सकते हैं, जिनकी विचारपूर्वक कल्पना की होती है और जिन्हें पूरा करने के बाद आत्मा सचचा आनंद प्राप्त करके सुखी तथा संतुष्ट हो सकती है।
संसार में आत तक जो भी कुछ भी महान, महत्वपूर्ण और उपयोगी हुआ है, वह दुर्बल शरीर और मन-मस्तिष्क वाले लोगों के द्वारा नहीं किया गया है। एवरेस्ट की चोटी पर मनुष्यता की जीत का झंडा फहराने वाले व्यक्ति अस्वस्थ और दुर्बल नहीं थे। हवाई जहाज उड़ाने वाले, पानी की धारा और प्रवाह के विरुद्ध नौकांए खेने वाले, बड़े-बड़े भवन खड़े करने वाले, सीमाओं की रक्षा के लिए भयानक और विषम परिस्थितियों में भी रात-दिन डटे रहना अवस्थ लोगों का कार्य नहीं हो सकता। तात्पर्य यह ह ेकि संसार में अच्छा-बुरा कुछ भी करने के लिए शारीरिक स्वास्थ्य आवश्यक है, यद्यपि बुराई को अस्वस्थ मन मस्तिष्क की देन माना जाता है।
अच्छा स्वास्थ्य इसलिए जरूरी नहीं होता कि मनुष्य को पहलवान या खिलाड़ी ही बनना होता है, नहीं, जीवन-समाज में हर उचित ओर अच्छा कार्य करने के लिए स्वास्थ्य बहुत आवश्यक है। व्यक्तियों से समाज और समाजों से देश और राष्ट्रीयता के स्वास्थ्य की जहांच व्य ित या व्यक्तियों के मायम से ही की जा सकती है। यदि व्यक्ति स्वस्थ है तो उनसे बने समाज को स्वस्थ कहा जा सकता है। यदि समाज स्वस्थ है तो देश कभी अस्वस्था रह ही नहीं सकता। अस्वस्थ से मतलब स्वाधीनता, स्वतंत्रता, प्रगति और विकास सभी कुछ है। ध्यान रहे, तन-मन, मस्तिष्क और आत्मा के महावरदानी स्वास्थ्य के बल पर ही समाज, देश और राष्ट्र को स्वस्थ सुंदर-अर्थात स्वतंत्र, उन्नत और विकसित रखा जा सकता है, अन्य कोई उपाय नहीं।
हम स्वंय स्वस्थ रहें, दूसरों को स्वस्थ रहने दें, उन सभी छोटे-बड़े कारणों को दूर करने का अकेले-अकेले और मिलकर भी प्रयत्न करें, जो अस्व्स्थता को किसी भी रूप में फैलाने वाले हैं। ऐसा करके ही हम लोग अपने मनुष्य होने के कर्तव्यों का निर्वाह तो कर ही सकते हैं, किसी समाज, देश और राष्ट्र के वासी होने के कारण उन सबके प्रति हमारी जो जिम्मेदारियां हो जाती है, उनका उचित निर्वाह करके उन सब के ऋणों से मुक्त हो सकते हैं। ऐसा हो पाने का प्रयत्न करना ही महावरदानी अच्छे स्वास्थ्य का प्रमुख लक्षण है।
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अच्छे स्वास्थ्य के लाभ acche swasthya ke laabh hindi essay
अंग्रेजी में एक कहावत है स्वास्थ्य ही सच्चा धन है। ध्यान से, व्यवहार की दृष्टि से वचिार करने में स्पष्ट हो जाता है कि कहावत में कही गई बात एकदम सत्य है। स्वस्थ व्यक्ति ही इस संसार और जीवन में इच्छित कार्य पूरे कर सकता है। जो चाहे, बन सकता है। जहां चाहे, जहा सकता है। जो भी इच्छा हो, खा-पीकर जीवन का हर आनंद प्राप्त कर सकता है।
आज तक संसार में छोटे-बड़े जितने प्रकार के भी कार्य हुए हैं वे स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन-मस्तिष्क वाले सबल व्यक्तियों द्वारा ही किए गए हैं। कहावत प्रसिद्ध है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन-मस्तिष्क और आत्मा का निवास हुआ करता है। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति ही उन्नति करने, ऊंचा उठने की कल्पनांए कर या विचार बना सकता हे। स्वस्थ मस्तिष्क या बुद्धि वाला व्यक्ति ही उन कल्पनाओं और विचारों को पूरा करने के लिए उपाय सोचकर साधन जुटा सकता है। इसके बाद शरीर के स्वस्थ रहने पर ही साधनों और उपायों से काम लेकर वे सारे कार्य किए जा सकते हैं, जिनकी विचारपूर्वक कल्पना की होती है और जिन्हें पूरा करने के बाद आत्मा सचचा आनंद प्राप्त करके सुखी तथा संतुष्ट हो सकती है।
संसार में आत तक जो भी कुछ भी महान, महत्वपूर्ण और उपयोगी हुआ है, वह दुर्बल शरीर और मन-मस्तिष्क वाले लोगों के द्वारा नहीं किया गया है। एवरेस्ट की चोटी पर मनुष्यता की जीत का झंडा फहराने वाले व्यक्ति अस्वस्थ और दुर्बल नहीं थे। हवाई जहाज उड़ाने वाले, पानी की धारा और प्रवाह के विरुद्ध नौकांए खेने वाले, बड़े-बड़े भवन खड़े करने वाले, सीमाओं की रक्षा के लिए भयानक और विषम परिस्थितियों में भी रात-दिन डटे रहना अवस्थ लोगों का कार्य नहीं हो सकता। तात्पर्य यह ह ेकि संसार में अच्छा-बुरा कुछ भी करने के लिए शारीरिक स्वास्थ्य आवश्यक है, यद्यपि बुराई को अस्वस्थ मन मस्तिष्क की देन माना जाता है।
अच्छा स्वास्थ्य इसलिए जरूरी नहीं होता कि मनुष्य को पहलवान या खिलाड़ी ही बनना होता है, नहीं, जीवन-समाज में हर उचित ओर अच्छा कार्य करने के लिए स्वास्थ्य बहुत आवश्यक है। व्यक्तियों से समाज और समाजों से देश और राष्ट्रीयता के स्वास्थ्य की जहांच व्य ित या व्यक्तियों के मायम से ही की जा सकती है। यदि व्यक्ति स्वस्थ है तो उनसे बने समाज को स्वस्थ कहा जा सकता है। यदि समाज स्वस्थ है तो देश कभी अस्वस्था रह ही नहीं सकता। अस्वस्थ से मतलब स्वाधीनता, स्वतंत्रता, प्रगति और विकास सभी कुछ है। ध्यान रहे, तन-मन, मस्तिष्क और आत्मा के महावरदानी स्वास्थ्य के बल पर ही समाज, देश और राष्ट्र को स्वस्थ सुंदर-अर्थात स्वतंत्र, उन्नत और विकसित रखा जा सकता है, अन्य कोई उपाय नहीं।
हम स्वंय स्वस्थ रहें, दूसरों को स्वस्थ रहने दें, उन सभी छोटे-बड़े कारणों को दूर करने का अकेले-अकेले और मिलकर भी प्रयत्न करें, जो अस्व्स्थता को किसी भी रूप में फैलाने वाले हैं। ऐसा करके ही हम लोग अपने मनुष्य होने के कर्तव्यों का निर्वाह तो कर ही सकते हैं, किसी समाज, देश और राष्ट्र के वासी होने के कारण उन सबके प्रति हमारी जो जिम्मेदारियां हो जाती है, उनका उचित निर्वाह करके उन सब के ऋणों से मुक्त हो सकते हैं। ऐसा हो पाने का प्रयत्न करना ही महावरदानी अच्छे स्वास्थ्य का प्रमुख लक्षण है।
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