मनुष्य स्वभाव से ही अध्ययनशील प्राणी माना गया है। ‘अध्ययन’ शब्द का अर्थ है-पढऩा। अध्ययन या पढऩे के मुख्य दो रूप स्वीकारे जाते हैं – एक, विशेष अध्ययन, जो किसी विशेष विषय या विशेष प्रकार की पुस्तकों तक ही सीमित हुआ करता है। दूसरा, सामान्य अध्ययन, जो सभी प्रकार के विषयों और पुस्तकों के साथ-साथ पत्र-पत्रिकांए तथा व्यापक जीवन के प्रत्येक पक्ष पढऩे तक विस्तृत हो सकता है। संसार की विविधता के अनुरूप विविध विषयों के अध्ययन का आनंद अपना अलग और सार्वभौमिक महत्व रखता है। इस प्रकार के अध्ययन से हमारा मनोरंजन तो हुआ ही करता है, हमारे व्यावहारिक ज्ञान का क्षेत्र भी विस्तार पाता है। इसी कारण इस व्यापक अध्ययन को विशेष महत्वपूर्ण स्वीकार किया गया है और इसी को अधिक आनंददायक भी माना जाता है।
बुद्धिमानों और विद्वानों ने पुस्तकों को मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ साथी बताया है। मनुष्य चाहे तो उसका यह साथी घर-बाहर प्रत्येक कदम पर उसके साथ रह सकता है। मन किसी उलझन में पड़ गया है, किसी चिंता ने आ दबोचा है, घबराइए नहीं। कोई अच्छी-सी पुस्तक, किसी सफल महापुरुष की जीवनी निकालकर पढऩे लगिए। कोई कारण नहीं कि उलझन का सुलझाव और समस्या का समाधान न हो जाए। अच्छी पुस्तकों में जीवन को सफल सार्थक बनाने वाले, हमारी उलझनों ओर समस्याओं को सुलझाने वाले अनगिनत उपाय भरे पड़े हैं। वे उपाय मन को आनंदित ते करते ही हैं, कई बार चौंका भी देते हैं और तब हम कहने को बाध्य हो जाया करते हैं कि-बस, इतनी-सी बात के लिए ही हम लोग व्यर्थ में परेशान हो रहे थे।
विद्वानों की मान्यता है कि पुस्तक अध्ययन के माध्यम से अपने घर के एकांत कमरे में हम संसार भर के महापुरुषों और उनके विचारों से सहज ही साक्षात्कार कर सकते हैं। उनके आनंदमय जीवन और सफलता के रहस्य जान उनकी राह पर चलकर अपना जीवन भी वैसा ही सफल-सार्थक बना सकते हैं। पुस्तकों के अध्ययन के माध्यम से बिना चले-फिरे अपने घर के एकांत कमरे में बैठकर ही हम देश-विदेश की यात्रा कर सकते हैं। देश-विदेश के अतीत में भ्रमण भी कर सकते हैं और वर्तमान की प्रगतियों, उन्नति या अवनति के कारणों को जान सकते हैं।
सामान्यतया अच्छी पुस्तकों का अध्ययन ही उचित होता है। फिर भी यह बात व्यक्ति की अपनी रुचि और परिस्थिति पर अवलंबित है कि वह किस प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन करे, या करता है। कुछ लोग सामान्य और सस्ती रुचि वाली पुस्तकें पढऩा ही पसंद करते हैं। यह ठीक है कि इस प्रकार का अध्ययन समय भी बिता देता है और सामान्य स्तर पर हमारा मनोरंजन भी कर देता है, पर इस प्रकार की सस्ती पुस्तकों को बढऩे का अंतिम परिणाम अच्छा नहीं हुआ करता। अत: कुरुचिपूर्ण, अश्लील औश्र भावों को भडक़ाने वाली पुस्तकों को दूर से ही नमस्कार कर देना चाहिए। इसी में व्यक्ति, घर-परिवार, समाज और सारे राष्ट्री की भलाई है। अध्ययन सामान्य हो या गंभीर, व्यक्ति की सुरुचि के अनुरूप ही होना चाहिए।
लोग भिन्न-भिन्न रुचियों और लक्ष्यों से अध्ययन में प्रवृत हुआ करते हैं। कुछ लोग धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में रुचि रखते हैं जबकि दूसरे साहित्यिक पुस्तकों के अध्ययन में। प्रत्येक व्यक्ति के रुचि और प्रयत्न करके सत्साहित्य के निरंतर अध्ययन की आदत डालनी चाहिए। इसमें प्रवृत्त होने पर ही उन सुख एंव बातों का अनुभव संभव हो सकेगा जो पीछे कही गई हैं और जिनके द्वारा महान कहे जाने वाले व्यक्तियों ने महानता अर्जित करने में सफलता प्राप्त की। अध्ययन का सहज जीवन-यापन ओर सफलता दोनों की सीढ़ी कह सकते हैं।
बुद्धिमानों और विद्वानों ने पुस्तकों को मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ साथी बताया है। मनुष्य चाहे तो उसका यह साथी घर-बाहर प्रत्येक कदम पर उसके साथ रह सकता है। मन किसी उलझन में पड़ गया है, किसी चिंता ने आ दबोचा है, घबराइए नहीं। कोई अच्छी-सी पुस्तक, किसी सफल महापुरुष की जीवनी निकालकर पढऩे लगिए। कोई कारण नहीं कि उलझन का सुलझाव और समस्या का समाधान न हो जाए। अच्छी पुस्तकों में जीवन को सफल सार्थक बनाने वाले, हमारी उलझनों ओर समस्याओं को सुलझाने वाले अनगिनत उपाय भरे पड़े हैं। वे उपाय मन को आनंदित ते करते ही हैं, कई बार चौंका भी देते हैं और तब हम कहने को बाध्य हो जाया करते हैं कि-बस, इतनी-सी बात के लिए ही हम लोग व्यर्थ में परेशान हो रहे थे।
विद्वानों की मान्यता है कि पुस्तक अध्ययन के माध्यम से अपने घर के एकांत कमरे में हम संसार भर के महापुरुषों और उनके विचारों से सहज ही साक्षात्कार कर सकते हैं। उनके आनंदमय जीवन और सफलता के रहस्य जान उनकी राह पर चलकर अपना जीवन भी वैसा ही सफल-सार्थक बना सकते हैं। पुस्तकों के अध्ययन के माध्यम से बिना चले-फिरे अपने घर के एकांत कमरे में बैठकर ही हम देश-विदेश की यात्रा कर सकते हैं। देश-विदेश के अतीत में भ्रमण भी कर सकते हैं और वर्तमान की प्रगतियों, उन्नति या अवनति के कारणों को जान सकते हैं।
सामान्यतया अच्छी पुस्तकों का अध्ययन ही उचित होता है। फिर भी यह बात व्यक्ति की अपनी रुचि और परिस्थिति पर अवलंबित है कि वह किस प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन करे, या करता है। कुछ लोग सामान्य और सस्ती रुचि वाली पुस्तकें पढऩा ही पसंद करते हैं। यह ठीक है कि इस प्रकार का अध्ययन समय भी बिता देता है और सामान्य स्तर पर हमारा मनोरंजन भी कर देता है, पर इस प्रकार की सस्ती पुस्तकों को बढऩे का अंतिम परिणाम अच्छा नहीं हुआ करता। अत: कुरुचिपूर्ण, अश्लील औश्र भावों को भडक़ाने वाली पुस्तकों को दूर से ही नमस्कार कर देना चाहिए। इसी में व्यक्ति, घर-परिवार, समाज और सारे राष्ट्री की भलाई है। अध्ययन सामान्य हो या गंभीर, व्यक्ति की सुरुचि के अनुरूप ही होना चाहिए।
लोग भिन्न-भिन्न रुचियों और लक्ष्यों से अध्ययन में प्रवृत हुआ करते हैं। कुछ लोग धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में रुचि रखते हैं जबकि दूसरे साहित्यिक पुस्तकों के अध्ययन में। प्रत्येक व्यक्ति के रुचि और प्रयत्न करके सत्साहित्य के निरंतर अध्ययन की आदत डालनी चाहिए। इसमें प्रवृत्त होने पर ही उन सुख एंव बातों का अनुभव संभव हो सकेगा जो पीछे कही गई हैं और जिनके द्वारा महान कहे जाने वाले व्यक्तियों ने महानता अर्जित करने में सफलता प्राप्त की। अध्ययन का सहज जीवन-यापन ओर सफलता दोनों की सीढ़ी कह सकते हैं।
0 comments:
Post a Comment