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Friday, June 28, 2019

विज्ञान और मानव-कल्याण, विज्ञान एक वरदान , vigyan ek vardan hindi essay 500 words

June 28, 2019
विज्ञान और मानव-कल्याण, विज्ञान एक वरदान , vigyan ek vardan hindi essay 500 words

शास्त्र, साहित्य, कला, सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान तथा अन्य जो कुछ भी इस विश्व में अपने सूक्ष्म या स्थूल स्वरूप में विद्यमान है, उन सबका एकमात्र एंव अंतिम लक्ष्य मानव-कल्याण या हित-साधन ही है। इससे बाहर या इधर-उधर अन्य कुछ भी नहीं। इससे भटकने वाले, इधर-उधर होने वालीं प्रत्येक उपलब्धि, योजना और प्रक्रिया अपने आपमें निरर्थक और इसलिए त्याज्य है। यही सृष्टि का सत्य एंव सार-तत्व है। सभी प्रकार की उपलब्धियों, साधनाओं, क्रियाकलपाओं और गतिविधियों का उद्देश्य या लक्ष्य मानव-कल्याण ही है और रहेगा। इसी मूल अवधारणा के आलोक में ही ‘विज्ञान और मानव कल्याण’ या इस जैसी किसी भी अन्य विषय-वस्तु पर विचार किया जा सकता है।



‘विज्ञान’ का शाब्दिक एंव वस्तुगत अर्थ कि किसी विषय का विशेष और क्रियात्मक ज्ञान। क्रियात्मक ज्ञान होने के कारण ही विज्ञान अपने अन्वेषणों-अविष्कारों के रूप में मानव को कुछ दे सकता या वर्तमान में दे रहा है। विज्ञान भौतिक सुख-समृद्धियों का मूल आधार तो है, पर आध्यात्मिक सिद्धियों-समृद्धियों का विरोधी कदापि नहीं है। फिर भी कईं बार क्या अक्सर विज्ञान को धर्म और अध्यात्मवाद का विरोधी समझ लिया जाता है। जबकि वस्तु सत्य यह है कि धम्र और अध्यात्म-भाव को वैज्ञानिक दृष्टि और विश्लेषण-शक्ति प्रदान कर विज्ञान मानव के हित-साधन में सहायता ही पहुंचाता है। विज्ञान ने उन अनेक अंध रूढिय़ों और विश्वासों पर तीखे प्रहार किए हैं, जिनकी भयानक जकड़ के कारण मानव-प्रगति के द्वार अवरुद्ध हो रहे थे।

वैज्ञानिक युग और वैज्ञानिक अनवेषणों-अविष्कारों का मूल लक्ष्य ही वस्तुत: मानव के कल्याण का पुनीत भाव है। यदि मानव स्वंय ही अपनी उपलब्धियों का अपने ही विनाश हित उपयोग करना चाहे, तो उसे कौन रोक सकता है। अपनी नियति का अपने कर्म-फल का विधाता मानव स्वंय है। वह विज्ञान की गाय के थनों से कोमल उंगलियों का सहारा लेकर दूध भी दुह सकता है कि जो हर हाल में पौष्टिक एंव स्वास्थ्यप्रद है, दूरी ओर यह मानव ही विज्ञान की गाय के थनों से जोंक की तरह चिपपकर उनके रक्त चूस उसके साथ-साथ अपने विनाश और सर्वनाश को भी आमंत्रित कर सकता है। उसे किसी भी दिशा में जाने से कौन रोक सकता है? हां, रोक सकता है, तो मात्र उसका अपना जागृत विवेक और तदनुरूप संपादित कर्म, अन्य कोई नहीं।



यह ठीक है कि दिन के साथ जुड़ी रहने वाली रात के समान विज्ञान ने विनाश के भी अनेक संसाधन जुटा दिए हैं। मानव के ह़दयय पक्ष को लगभग शून्य बना उसे अधिकाधिक बुद्धिवादी बना दिया है। जिस कारण अनेकविध रसिक-रोचक वैज्ञानिक साधनों-प्रसाधनों के रहते हुए भी आज का मानव-जीवन शुष्क-नीरस होता जा रहा है।  यदि हम स्वंय अपनी विचारधारा, अपने हृदय और बुद्धि, अपनी इच्छाओं और स्वार्थों को संतुलित रख सकें तो कोई कारण नहीं कि विज्ञान मानवता का बाल भी बांका कर सके। मानव-कल्याण के अपने पावन ओर चरम लक्ष्य से विज्ञान स्वंय नहीं भटकता, हम मनुष्य भटका करते हैं। तब उसे दोष देने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम मानव अपने मन-मस्तिष्क को विशाल, उदार और संतुलिब बनांए। निहित स्वार्थों या दंभो को, सभी प्रकार की कुंठाओं को भुलाकर विज्ञान की गाय के बछड़े बनकर उसका दूध पीने-दुहने का ही प्रयत्न करें, जोंक बनकर रक्त चूसने का नहीं। बस-फिर मानवता का कल्याण ही कल्याण है। अन्य कोई उपाय नहीं है कल्याण का।

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