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Wednesday, June 19, 2019

यदि मैं शिक्षक होता yadi mai shikshak hota essay 500 words

June 19, 2019
यदि मैं शिक्षक होता



हर युग में शिक्षा का महत्व रहा है। जब तक धरती पर मनुष्य का जीवन रहेगा, तब तक शिक्षा का महत्व भी बना रहेगा। इसमें तनिक सा भी संदेह नहीं। शिक्षा को प्रकाश तो कहा ही जाता है, मनुष्य की आंख भी माना जाता है। आज के जीवन-समाज में शिक्षा का महत्व तो है, पर शिक्षक का मान और महत्व निरंतर घट गया और घटता जा रहा है। इसके लिए जहां आज की शिक्षा-पद्धति समाज की आदर्शनहीता आदि को दोषी माना जाता है, वहां अध्यापकों का भी कम दोष नहीं कहा जाता। शिक्षा को आज के शिक्षकों ने एक पवित्र, निस्वार्थ सेवा-कर्म न दहने देकर, एक प्रकार का व्यवसाय बा दिया है, इस कारण शिक्षक का पहले जैसा सम्मान नहीं रह गया। फिर भी मैं जीवन में यदि कुछ बनना चाहता हूं तो शिक्षक ही बनना चाहता हूं। क्यों बनना चाहता हूं, इसके कईं कारण और योजनांए हैं, जिन्हें मैं शिक्षक बन कर ही पूर्ण कर सकता हूं।

यदि मैं शिक्षक होता, तो सबसे पहले अपने छात्रों को पुस्तकों एक सीमित रखने वाली इस बंधी-बंधाई शिक्षा-पद्धति के घेरे से उन्हें बाहर निकालने का यत्न करता। वास्तविक शिक्षा के लिए उन्हें बंद कक्षा-भवनों से बाहर निकालने की कोशिश भी करता। उन्हें बताता कि हमें प्रकृति की खुली किताब भी खुले मन से पढऩी चाहिए। इस कारण यदि मैं शिक्षक होता तो इस बेकार हो चुकी शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ परीक्षा प्रणाली को बदलवाने की भी कोशिश करता।

 मैं यदि शिक्षक होता तो कहीं भी जाकर मन लगाकर पढ़ाता। अपने गांव-शहर या गली-मुहल्ले के स्कूल में नियुक्त होकर भी पहला काम पढ़ाने का ही करता अपने घरेलु धंधों का एकदम नहीं। सच्चे मन से, उत्साह और प्रयत्नपर्वक पढ़ाकर ही कोई शिक्षक जीवन-समाज में आदत तो पा ही सकता है। आत्मसंतोष भी पा सकता है। शिक्षा देना वास्तव में एक पवित्र कर्म है। राष्ट्री-निर्माण का सच्चा आधार शिक्षक ही है।


अक्सर ऐसा कहा सुना जाता है कि आज के शिक्षक स्वंय तो पढ़ते नहीं, जो पुस्तकें विद्यार्थियों को पढ़ानी होती हैं, वे भी पढक़र नहीं आया करते, फिर वे छात्रों को क्या खाक पढाएंगे? यदि मैं शिक्षक होता, तो अपने पर यह इलजाम कभी भी न लगने देता। जो कक्षांए पढ़ानी हैं, उनका पाठयक्रम तो पढ़ता ही, विषय से संबंध रखने वाली और पुस्तकें भी पढक़र आता, जिससे अपने छात्रों को अधिक से अधिक जानकारी देकर उसका ज्ञान बढ़ाने में सहायक होता।  यदि मैं शिक्षक होता, तो कुंजियां लिखने-पढऩे पर हर तरह का प्रतिबंध लगवा देता।

कहा जाता है कि कक्षाओं में तो अध्यापक पढ़ाते नहीं, पर अपने घर आकर पढऩे के लिए छात्रों पर दबाव डालते हैं। स्कूली परीक्षाओं में केवल ट्यूशन रखने वाले छात्रों को ही अनाम-शनाप अंक देकर पास कर देते हैं,इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली सभी का सत्यानाश करके रख देती है। यदि मैं शिक्षक होता तो इस ट्यूशनवादी प्रवृति को जड़-मूल से उखाड़ देने का प्रयत्न करता। स्कूल समाप्त होने के बाद कमजोर छात्रों को मुफ्त में पढ़ा देता। पर ट्यूशन कभी भूल कर भी न करता।

इस प्रकार आदर्श अध्यापक वही होता है जो अपने छात्रों की चहुंमुखी प्रतिभा के विकास के लिए प्रयत्नशील रहा करता है। यदि मैं शिक्षक होता, तो इस दृष्टि से अपने कर्तव्यों का निर्धारण और निर्वाह किया करता। मैं चाहता हूं कि देश का सारा शिक्षक वर्ग अपने को देश के भविष्य का निर्माण्ण करने वाला बन करके कार्य करे। इसी में उसका अपना, शिक्षा-जगत का, भावी नागरिक छात्रों और सारे देश का वास्तविक कल्याण है। मैं तो कम से कम ऐसा मान कर ही चलता।

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