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Thursday, June 13, 2019

समाज और कुप्रथांए samaj aur kuprathaye 300 words

June 13, 2019



हम जहां रहते हैं, जिनके बीच रहते हैं, वह समाज है। समाज मनुष्यों के मिल-जुलकर रहने का स्थान है। व्यक्ति अकेला नहीं रहा सकता। आज व्यक्ति जो भी कुछहै , वह समाज के कारण है। तो व्यक्ति है, उसका विकास यापतन है। बिना समाज के व्यक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि सब समाज की देन है। समाज में फैली हुई कुरीतियां या कुप्रथांए भी समाज के विकार के कारण है।



जब असद प्रवृति वाले मनुष्य समाज के अगुवा बन गए तब सद प्रवति वालों को वे तरह-तरह के उपाय वह नियमोपनियम बनाकर परेशान करने लगे।  इसी से कुरीतियों को जड़ पकडऩे का अवसर मिला कुरीतियों या कुप्रथाओं को हवा देने का काम धर्म के पुरोधाओं ने शुरू किया। वे धम्र के नाम पर अंधविश्वास फैलाने लगे और परस्पर भेदभाव की दीवार खड़ी करके मानव को मानव का विरोधी बनाने में सफल हुए।



जाति का आधार जो कर्म के अनुसार था, अब जन्म के अनुसार हो गया इस कारण समाज में अछूत जातियां बनी जिसके दश्रन और स्पर्श से कभी उच्च जातियों के लोग परहेज करते थे। आज भी हमारे समाज में अछूत लोग विद्यमान है। सरकार लाख प्रयत्न कर रही है परंतु अभी तक इस कुपरंपरा को तोडऩे में वह पूर्णतया सफल नहीं हो सकी है।


बाल-विवाह जिन्हें कानूनन आज अपराध माना गाय है, हो रहे हैं। अनमेल-विवाह अर्थात युवती की बूढ़े के साथ शादी की जा रही है। दहेज कम लोने के कारण बहुओं को जलाया जा रहा है। यदि कोई बहुत जलने से बच गई तो उसे दूध में से मक्खी की तरह घर से बाहर कर दिया जाता है। इतना विकास हो जाने पर भी यह कुप्रथा दिनों-दिन तेजी से बढ़ती जा रही है।


 दिन पर दिन समाज अर्थलोलुपता के चंगुल में फंसता जा रहा है। कुप्रथाओं के विरोध में जो संस्थांए काम कर रही हैं, वे भी प्रदर्शन से जयादा कुछ नहीं कर रही है, काम कर पा रहे हैं। क्योंकि वे स्वंय अनेक कुप्रथाओं की शिकार है। इस दिशा में सबको एक जुट होगर अपने लिए प्रयास करना चाहिए और कुप्रथाओं का डटकर विरोध कर उनके अस्तित्व को नगण्य करना चाहिए। 

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