विश्व में ऐसा तो कोई अभागा ही होगा जिसे अपने देश से प्यार न हो। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी अपने देश या घर से अधिक समय तक दूर नहीं रह पाते। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक स्वदेश-प्रेमी हुआ करते हैं।
देश अपने आप में होता एक भू-भाग ही है। उसकी अपने कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक सीमांए तो होती ही हैं, कुछ अपनी विशेषतांए भी हो सकती हैं बल्कि अनावश्यक रूप से हुआ ही करती है। स्वदेश प्रेम का वास्तविक अर्थ उस भू-भाग के कण-कण से धरती पर उगने वाले पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों ओर पत्ते-पत्ते या जर्रे से प्रेम हुआ करता है।
जिसे अपनी मातृभूमि से स्नेह, वह तो मनुष्य कहलाने लायक ही नहीं है।
अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और रक्षा के सामने व्यक्ति अपने प्राणों तक का महत्व तुच्छ मान लेता है। जब देश स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा था। तब नेताओं का एक संकेत पाकर लोग लाठियां-गोलियां तो खाया-झेला ही करते थे, फांसी का फंदा तक गले में झूल जाने को तैयार रहा करते थे।
स्वदेश प्रेम वास्तव में देवी-देवताओं और स्वंय भगवान की भक्ति-पूजा से भी बढक़र महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वदेश प्रेम की भावना से भरे लोग भूख-प्यास आदि किसी भी बात की परवाह न कर उस पर मर मिटने के लिए तैयार दिखाई दिया करते हैं।
देश अपने आप में होता एक भू-भाग ही है। उसकी अपने कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक सीमांए तो होती ही हैं, कुछ अपनी विशेषतांए भी हो सकती हैं बल्कि अनावश्यक रूप से हुआ ही करती है। स्वदेश प्रेम का वास्तविक अर्थ उस भू-भाग के कण-कण से धरती पर उगने वाले पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों ओर पत्ते-पत्ते या जर्रे से प्रेम हुआ करता है।
जिसे अपनी मातृभूमि से स्नेह, वह तो मनुष्य कहलाने लायक ही नहीं है।
अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और रक्षा के सामने व्यक्ति अपने प्राणों तक का महत्व तुच्छ मान लेता है। जब देश स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा था। तब नेताओं का एक संकेत पाकर लोग लाठियां-गोलियां तो खाया-झेला ही करते थे, फांसी का फंदा तक गले में झूल जाने को तैयार रहा करते थे।
स्वदेश प्रेम वास्तव में देवी-देवताओं और स्वंय भगवान की भक्ति-पूजा से भी बढक़र महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वदेश प्रेम की भावना से भरे लोग भूख-प्यास आदि किसी भी बात की परवाह न कर उस पर मर मिटने के लिए तैयार दिखाई दिया करते हैं।
0 comments:
Post a Comment