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Friday, March 22, 2019

”प्रदूषण का प्रकोप” Hindi Essay on “Pradushan ka Prakop” , 627 words

March 22, 2019
प्रदूषण एक विश्वव्यापी समस्या है। इस समस्या में विश्व के सभी नगर त्रस्त हैं। विभिन्न कारणों से जल, वायु ध्वनि और मिट्टी का पारस्परिक संतुलन बिगडऩा ही प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने वाले तत्वों में विकास उत्पन्न होने के कारण प्रदूषण का जन्म होता है। वास्तव में मानव द्वारा औद्योगिक वैज्ञानिक चाहत ही प्रदूषण बढ़ाने में कार्यरत है। नगरों में तेजी से विकास हो रहा है और ग्रामीण जनसंख्या का इस ओर पलायन भी हो रहा है। जिसके कारण देश में अनेग नगर महानगर बन गए हैं तथा वहां जनसंख्या का अधिक अपनी चरम सीमा को भी पास कर गया है।

देश की जनसंख्या सौ करौड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है, इसके बाद भी गति नहीं रुकी यद्यपि चीन की जसंख्या हमारे देश से अधिक है। परंतु वह दिन दूर नहीं जब हमारी जनसंख्या चीन को भी पीछे छोड़ देगी।

देश में बढ़ते नगर तथा महानगर तथा बढ़ती जनसंख्या एक गंभीर समस्या को जन्म देती है। वह समस्या है – प्रदूषण की समस्या। जनसंख्या के इस दबाव का सीधा प्रभाव वायुमंडल पर पड़ता है। इस जनसंख्या के लिए धरती कम पड़ जाती है। जिसके कारण झुज्गी-झोपडिय़ां, स्लत तथा झोपड़-पट्टियों की संख्या महानगरों में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन स्थाना में वायुमंडल इतना प्रदूष्ज्ञित हो जाता है कि सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु भी नहीं मिलती। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, कानपुर जैसे अनेक नगर गंभीर रूप से प्रदूषित हैं।



महानगरों में कई प्रकार का प्रदूषण है। इसमें सर्वप्रथम आता है- वायु प्रदूषण यह अन्य प्रकार के प्रदूषणों में सबसे अधिक हानिकारक माना गया है। महानगरों में वाहनों, कल कारखानों और औद्योगिक इकाइयों की बढ़ती संख्या के कारण वातावरण प्रदूषित हो जाता है। सडक़ों पर चलने वाले वाहन रोज लाखों गैलन गंदा धुआं उगलते हें। जब यह धुआं सांस द्वारा हमारे शरीर में जाता है तो दमा, खंसाी, टी.बी., फेफड़ों और हृदय के रोग कैंसर जैसे घातक रोगों को जन्म देते हैं। आवास की समस्या को हल करने के लिए इन महानगरों में वृक्षों की अनियंत्रित कटाई की जाती है। जिसके कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है। वृक्ष इनकी कटाई हो जाने से वातावरण की अशुद्धता दूर करने का कोई रास्ता नहीं बचता।

महानगरों में जल भी एक गंभीर समस्या बन गया है नगरों में जल के स्त्रोत भी दूषित हो गए। नगरों के आस-पास फैले उद्योगों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ तथा रासायनिक कचरा जब नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है तो जल प्रदूषित हो जाता है और पीने योज्य नहीं रहता। इस प्रदूषित जल को पीने से पेट की अनेक प्रकार की बीमारियां जन्म लेती हैं।

महानगरों में ध्वनि प्रदूषण भी कम नहीं होता। वाहनों तथा कल कारखानों से निकलता हुआ शोर, सघन जनसंख्या का शोर तथा ध्वनि विस्तारकों आदि का शोर ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण है। ध्वनि प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कान के रोग आदि हो सकते हैं।

भूमि प्रदूषण भी अत्याधिक मात्रा में बड़े-बड़े शहरों में पाया जाता है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में व्याप्त गंदगी भूमि प्रदूषण को जन्म देती है। झुज्गी-झोपडिय़ों में शौचालयों, स्नानघरों आदि के अभाव के कारण भूमि प्रदूषण बढ़ जाता है। भूमि प्रदूषण में मक्खी-मच्छरों का प्रको बढ़ जाता है। तथा स्वास्यि को गंभीर रूप से हानि पहुंचती है।

शहरों में बढ़े प्रदूषण को रोकना नितांत आवश्यक है। इसे रोकने के लिए सबसे पहले जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है। सरकार का प्रयास होना चाहिए कि गांवों में लघु उद्योगों का इस प्रकार विकास करे कि गांवों की जनसंख्या नगरों की ओर पलायन न करे। साथ ही औद्योगिक इकाइयों को शहरों से दूर लगाया जाना चाहिए तथा इनसे निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों ओर कचरे को नदियों में बहा देने वाली इकाइयों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने संबंधी कानूनों का सख्ती से पालन किया जाए। नगरों में अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए तथा हरे-भरे वृक्षों को काटने पर रोक लगाई जाए।

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