वैज्ञानिक अविष्कारों के कारण आज का युग विज्ञान का युग माना जाता है। विज्ञान एक ऐसी शक्ति है जिसने प्रतिदिन नए अविष्कार करके मानव जीवन को सरल और आरामदायक बनाने के लिए उपकरण प्रदान किए हैं। बटन दबाते ही विभिन्न वैज्ञानिक उपकरण आज्ञाकारी सेवक की भांति हमारी सेवा में तत्पर रहते हैं। जिनके कारण मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अदभुत क्रांति आ गई है। इसलिए आज के युग को चतत्कारों का युग कहा जाता है।
विद्यत के अविष्कार ने तो मान को अनेक सुखों से भर दिया है। सुबह उठने से लेकर रात सोने तक मानव जिस प्रकार के उपकरणों-साधनों का उपयोग करता है वे सभी अधुनिक विज्ञान की ही देना है आज मानव को गर्मी से बचने के लिए पंखे, एयर कंडीशनर, रेडियों, चलचित्र टेलिविजन, बल्ब, रसोई के उपकरण आदि विज्ञान की देन है विज्ञान के चमत्कारों ने आज हमारी आस्थाओं और विश्वासोतक को बदलकर रख दिया।
आज मानव पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक सरलता से पहुंच सकता है। एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी कुछ घंटों की रह गई है। जैसे हवाई जहाज, बस, आदि आज विज्ञान ने आकाश, पाताल, पृथ्वी, अंतरिक्ष आदि के अनेक गूढ़ रहसयों को सुलझा दिया है।
कभी जिन रोगों के इलाज की कल्पना तक कर पाना संभव नहीं था और जिन्हें मौत का सीधा परवान माना जाता था आज के विज्ञान ने उनका नाम तक मिटा दिया है। वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से मानव हिमालय के उच्च शिखर पर विजय-ध्वज फहरा आया है। और चंद्रलोक तक की भूमि पर चरण सिंह अंकित कर आया। अन्य ग्रहों पर भी जाने की तैयारी कर रहा है। विज्ञान की सहायता से आज मानव सागर का अंतराल चीरकर उसके अंतरतल की खोज करने लगा है। विज्ञान की सहायता से ही आज का उन्नत तकनीकी मानव रेगिस्तानों में फूल तो खिलाने ही लगा है, वहां की रेत को निचोडक़र उससे तेल प्राप्त करना भी आधुनिक विज्ञान का ही चमत्कार है।
आधुनिक विज्ञान ने युद्ध तकनीक में भी विशेष चमत्कार कर दिखाया है। परमाणु बम की कहानी उस समय पुरानी लगने लगती है कि जब हाईड्रोजन बम, कोबाल्ट बम, जैविक या रासायनिक बमों एंव शस्त्रास्त्रों के निर्माण की लोभहर्षक चर्चा सुन पड़ती है। ऐसी गैसों की चर्चा कि हवा से लि जाने पर, उस हवा का नन्नहा सा झोंका जहां कहीं भी पहुंचेगा, वही मृत्यु का तांडव होने लगेगा। फिर भविष्य में यदि युद्ध होंगे तो उनका संचालन कोई भूमिगत और चमत्कृत कर देने वाले होंगे तो उनका संचालन कोई भूमिगत और चमत्कृत कर देने वाला वैज्ञानिक यंत्र कर रहा होगा। इस प्रकार आज विज्ञान ने युद्धकला को विनाश और सर्वनाश की कला बना दिया है। मानव उसके सामने मात्र एक मिट्टी का लौंदा बनकर रह गया है। नागासाकी ओर हिरोशिमा की विनाशलीला के घातक दुष्परिणाम अभी तक देखे जा सकते हैं।
ध्वनि, जल , वायु प्रदूषण का जन्मदाता भी वतृमान विज्ञान को ही माना जाता है। विज्ञान ने मानव को धर्म-विुख तथा अनीश्वरवादी भी बना दिया है। उसकी कोमल भावनांए लुत्प हो गई हैं तथा वह बुद्धवादी, भौतिकवादी तथा जड़वत यंत्रवत बना दिया है। इसलिए रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था-
‘विज्ञान यान पर चढ़ी आज सभ्यता डूबने जाती है।’
इस सारे वर्णन से सामनय तथा आधुनिक विज्ञान और तकनीक की प्रगति और विकास, उसमें अदभुत अविश्वसनीय से लगने वाले चमत्कारों का चित्र तो उभरकर सामने आ ही जाता है। मानवता पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति के मस्तक पर चिंता की रेखाांए भी उभर आती हैं। वास्तव में विज्ञान अपने में निर्माण तथा सृजन के साथ विनाश एंव विध्वंस की शक्तियां समेटे हुए हैं। अब यह उसकी प्रयोगकर्ता पर निर्भर है कि वह उसकी शक्तियों का प्रयोग निर्माण के लिए करता है अथवा विनाश के लिए? विज्ञान तो विष्णु की भांति सबका पालन है, पर इसका दुरुपयोग करने पर शिव के समान संहारक बन सकता है। अत: इसकी शक्तियों का प्रयोग सोच समझकर करना होगा क्योंकि अंकुश के अभाव में यह विनाशकारी बन जाता है। कहा भी है-
‘भलाबुरा न कोई रूप से कहाता है
दृष्टि-भेद स्वंय दोष-गुण दिखलाता है।
कोई कमल की काली देखता है कीचड़ में
किसी को चांद में भी दाग नजर आता है।’
विद्यत के अविष्कार ने तो मान को अनेक सुखों से भर दिया है। सुबह उठने से लेकर रात सोने तक मानव जिस प्रकार के उपकरणों-साधनों का उपयोग करता है वे सभी अधुनिक विज्ञान की ही देना है आज मानव को गर्मी से बचने के लिए पंखे, एयर कंडीशनर, रेडियों, चलचित्र टेलिविजन, बल्ब, रसोई के उपकरण आदि विज्ञान की देन है विज्ञान के चमत्कारों ने आज हमारी आस्थाओं और विश्वासोतक को बदलकर रख दिया।
आज मानव पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक सरलता से पहुंच सकता है। एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी कुछ घंटों की रह गई है। जैसे हवाई जहाज, बस, आदि आज विज्ञान ने आकाश, पाताल, पृथ्वी, अंतरिक्ष आदि के अनेक गूढ़ रहसयों को सुलझा दिया है।
कभी जिन रोगों के इलाज की कल्पना तक कर पाना संभव नहीं था और जिन्हें मौत का सीधा परवान माना जाता था आज के विज्ञान ने उनका नाम तक मिटा दिया है। वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से मानव हिमालय के उच्च शिखर पर विजय-ध्वज फहरा आया है। और चंद्रलोक तक की भूमि पर चरण सिंह अंकित कर आया। अन्य ग्रहों पर भी जाने की तैयारी कर रहा है। विज्ञान की सहायता से आज मानव सागर का अंतराल चीरकर उसके अंतरतल की खोज करने लगा है। विज्ञान की सहायता से ही आज का उन्नत तकनीकी मानव रेगिस्तानों में फूल तो खिलाने ही लगा है, वहां की रेत को निचोडक़र उससे तेल प्राप्त करना भी आधुनिक विज्ञान का ही चमत्कार है।
आधुनिक विज्ञान ने युद्ध तकनीक में भी विशेष चमत्कार कर दिखाया है। परमाणु बम की कहानी उस समय पुरानी लगने लगती है कि जब हाईड्रोजन बम, कोबाल्ट बम, जैविक या रासायनिक बमों एंव शस्त्रास्त्रों के निर्माण की लोभहर्षक चर्चा सुन पड़ती है। ऐसी गैसों की चर्चा कि हवा से लि जाने पर, उस हवा का नन्नहा सा झोंका जहां कहीं भी पहुंचेगा, वही मृत्यु का तांडव होने लगेगा। फिर भविष्य में यदि युद्ध होंगे तो उनका संचालन कोई भूमिगत और चमत्कृत कर देने वाले होंगे तो उनका संचालन कोई भूमिगत और चमत्कृत कर देने वाला वैज्ञानिक यंत्र कर रहा होगा। इस प्रकार आज विज्ञान ने युद्धकला को विनाश और सर्वनाश की कला बना दिया है। मानव उसके सामने मात्र एक मिट्टी का लौंदा बनकर रह गया है। नागासाकी ओर हिरोशिमा की विनाशलीला के घातक दुष्परिणाम अभी तक देखे जा सकते हैं।
ध्वनि, जल , वायु प्रदूषण का जन्मदाता भी वतृमान विज्ञान को ही माना जाता है। विज्ञान ने मानव को धर्म-विुख तथा अनीश्वरवादी भी बना दिया है। उसकी कोमल भावनांए लुत्प हो गई हैं तथा वह बुद्धवादी, भौतिकवादी तथा जड़वत यंत्रवत बना दिया है। इसलिए रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था-
‘विज्ञान यान पर चढ़ी आज सभ्यता डूबने जाती है।’
इस सारे वर्णन से सामनय तथा आधुनिक विज्ञान और तकनीक की प्रगति और विकास, उसमें अदभुत अविश्वसनीय से लगने वाले चमत्कारों का चित्र तो उभरकर सामने आ ही जाता है। मानवता पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति के मस्तक पर चिंता की रेखाांए भी उभर आती हैं। वास्तव में विज्ञान अपने में निर्माण तथा सृजन के साथ विनाश एंव विध्वंस की शक्तियां समेटे हुए हैं। अब यह उसकी प्रयोगकर्ता पर निर्भर है कि वह उसकी शक्तियों का प्रयोग निर्माण के लिए करता है अथवा विनाश के लिए? विज्ञान तो विष्णु की भांति सबका पालन है, पर इसका दुरुपयोग करने पर शिव के समान संहारक बन सकता है। अत: इसकी शक्तियों का प्रयोग सोच समझकर करना होगा क्योंकि अंकुश के अभाव में यह विनाशकारी बन जाता है। कहा भी है-
‘भलाबुरा न कोई रूप से कहाता है
दृष्टि-भेद स्वंय दोष-गुण दिखलाता है।
कोई कमल की काली देखता है कीचड़ में
किसी को चांद में भी दाग नजर आता है।’
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