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Friday, March 22, 2019

, ”देश प्रेम या स्वदेश प्रेम, Hindi Essay on “Desh Prem or Swadesh Prem” 380 words words

March 22, 2019
विश्व में ऐसा तो कोई अभागा ही होगा जिसे अपने देश से प्यार न हो। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी अपने देश या घर से अधिक समय तक दूर नहीं रह पाते।  एक नन्हीं सी चींटी भ अपने बिल से पता नहीं कितनी दूर चली जाती है उसे भी अपने नन्हें और अदृश्य से हाथों या दांतों में चावल का दाना दबाए वापस लौटने को बेताब रहती है ये उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक स्वदेश-प्रेमी हुआ करते हैं।

देश अपने आप में होता एक भू-भाग ही है। उसकी अपने कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक सीमांए तो होती ही हैं, कुछ अपनी विशेषतांए भी हो सकती हैं बल्कि अनावश्यक रूप से हुआ ही करती है। वहां के रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, भाषा और बोलचाल, धार्मिक-सामाजिक विश्वास और प्रतिष्ठान, संस्कृति का स्वरूप और अंतत: व्यवहार सभी कुछ अपना हुआ करता है  इस कारण स्वदेश प्रेम का वास्तविक अर्थ उस भू-भाग के कण-कण से धरती पर उगने वाले पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों ओर पत्ते-पत्ते या जर्रे से प्रेम हुआ करता है। जिसे अपनी मातृभूमि से स्नेह, वह तो मनुष्य कहलाने लायक ही नहीं है।

‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है वह नर नहीं है, पशु गिरा है, और मृतक समान है।’

श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को कहा था कि मुझे यह सोने की लंका भी स्वदेश से अच्छी नहीं लगती। मां और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान लगते हैं।

‘अपिस्वर्णमयी लंका न में लक्ष्मण रोचते

जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी’

 अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और रक्षा के सामने व्यक्ति अपने प्राणों तक का महत्व तुच्छ मान लेता है। अपना प्रत्येक सुख-स्वार्थ, यहां तक कि प्राण भी उस पर न्यौछावर कर देने से झिझकना नहीं। जब देश स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा था। तब नेताओं का एक संकेत पाकर लोग लाठियां-गोलियां तो खाया-झेला ही करते थे, फांसी का फंदा तक गले में झूल जाने को तैयार रहा करते थे।

स्वदेश प्रेम वास्तव में देवी-देवताओं और स्वंय भगवान की भक्ति-पूजा से भी बढक़र महत्वपूर्ण माना जाता है।  स्वदेश प्रेम की भावना से भरे लोग भूख-प्यास आदि किसी भी बात की परवाह न कर उस पर मर मिटने के लिए तैयार दिखाई दिया करते हैं।

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