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Thursday, July 18, 2019

कहे कबूतर kahe kabootar hindi kavita

July 18, 2019

कहे कबूतर गुटरूगूं-गुटरूगूं
भाई गुटरूगूं
बोलूं या चुप हो जाऊं,
रूकूं यहां या उड़ जाऊं,
दाने बिन बिन कर खाऊं,
दुपहर है क्या सुस्ताऊं ?
कहो कहां पर छिप जाऊं,
नहीं यहां पर फिर आऊं?
बार-बार तुम से पूछूं,
जो भी कह दो वही करूं,
गुटरूगूं भाई गूटरूगूं।
लेकिन इतना मुझे पता,
देता हूं मैं अभी बता,
जिस दिन चला गया उड़कर
देखा फिर ना इधर मुड़कर।
तुम पीछे पछताओगे,
बस मन में दुहराओगे,
अब मैं कैसे, कहां सुनूं,
गुटरूगूं भाई गुटरूगूं।


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