मेरा प्रिय लेखक mera priya lekhak hindi essay 490 words
यह सभी जानते और मानते हैं कि हिंदी-साहित्य के आंगन में ऐसे अनेक लेखकर-रत्न जन्म ले चुके हैं कि जिनका लोहा आज भी सारा विश्व स्वीकार करता है और भविष्य में भी निरंतर करता रहेगा। मेरे विचार में महान और सदाबहार लेखक वही हुआ करता है, जिसकी लेखनी में मानवता की निरीहता का दर्द हमेशा गूंजकर पूरी मनुष्य जाति की अमर धरोहर बन जाता हो। निरीज मानवता की इच्छा-अकांक्षाओं को साहित्य के भिन्न रूपों में साकार करने वाला लेखक मेरे विचार में, हिंदी साहित्य में आत तक एक ही हुआ है और वही मेरा प्रिय भी है। मेरे उस परमप्रिय लेखक का नाम है प्रेमचंद। प्रेमचंद ने यहां तो निबंध और नाटक भी रचे, परंतु मुख्यत: उपन्यास और कहानीकार के रूप में एक महान लेखक, कला सम्राट जाने-माने जाते हैं। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि इन दोनों रूपों में इतने वर्षों बाद वे आज भी अजोड़ ओर कहानी-उपन्यास-कला-सम्राट बने हुए हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सका।
प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव लमही में सन 1880 में हुआ था। पिता पोस्ट ऑफिस के सामान्य कलर्क थे। उस पर बुढ़ापे में दूसरा विवाह रचा लेने की गलती कर बैठे थे। परिणामस्वरूप बचपन के सुकुमार क्षणों से ही इनको अनेक प्रकार के आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। ट्यूशन आदि करके इन्होंने पिता के बाद घर-परिवार का पालन भी किया और अपनी शिक्षा भी ज्यों-त्यों जारी रखी। इन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यास रचे और तीन सौ से अधिक कहानियां लिखीं। प्रतिज्ञा, वरदान, सेवासदन, निर्मला, गबन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, गोदान और मंगलसूत्र (अधूरा) आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। इनकी कहानियों के संकलनों के नाम हैं – प्रेम पचीसी, सप्त सरोज, प्रेम पूर्णिमा, प्रेम द्वादशी, प्रेम पीयूष, प्रेम प्रतिमा, पंच प्रसून, सप्त सुमन, प्रेम प्रमोद और प्रेम चतुर्थी आदि। इन कहानियों के संकलन आजकल अन्य कईं नामों से भी बाजार में उपलब्ध हैं।
हिंदी उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में इनका आगमन एक वरदान से कम महत्वपूर्ण नहीं माना गया। जैसा कि हम उनकी जीवनी में देख चुके हैं, प्रेमचंद ने जीवन की कटुताओं को निकट से देखा और भोगा था। अपने युग के समाज, धर्म, राजनीति के अनुभवों को संजोया था। इसी कारण उनके उपन्यास और कहानियां इतनी प्रभावशाली हैं कि पुराने होकर भी उनके कथानक, उनकी रचना-प्रक्रिया तथा अन्य तत्व हमेशा ताजे लगते हैं। इन सभी बातों ने भी उन्हें मेरा प्रिय लेखक या उपन्यासकार बना दिया है।
मेरे इस प्रिय लेखक को कोई तो यथार्थवादी कहता है और कोई आदर्शवादी, किंतु उन्होंने अपने आपको आदर्शोन्मुख यथार्थवादी ही कहा है। मेरे विचार में वे शुरू से अंत तक प्रमुख रूप से केवल मानवतावादी ही थे। मानवता के दर्द को ही उन्होंने अपनी सभी प्रकार की रचनाओं में संजोया है। मेरे इस मानवतावादी प्रिय लेखक का स्वर्गवास यद्यपि आज से कईं दशक पहले सन 1936 में ही हो गया था पर अपनी रचनाओं में वह आज भी जिंदा है और हमेशा रहेंगे। विश्व के चंद गिने-चुने अमर कहानिकारों में आज भी उनका स्थान अग्रगण्य बना हुआ है और हमेशा का रहेगा।
यह सभी जानते और मानते हैं कि हिंदी-साहित्य के आंगन में ऐसे अनेक लेखकर-रत्न जन्म ले चुके हैं कि जिनका लोहा आज भी सारा विश्व स्वीकार करता है और भविष्य में भी निरंतर करता रहेगा। मेरे विचार में महान और सदाबहार लेखक वही हुआ करता है, जिसकी लेखनी में मानवता की निरीहता का दर्द हमेशा गूंजकर पूरी मनुष्य जाति की अमर धरोहर बन जाता हो। निरीज मानवता की इच्छा-अकांक्षाओं को साहित्य के भिन्न रूपों में साकार करने वाला लेखक मेरे विचार में, हिंदी साहित्य में आत तक एक ही हुआ है और वही मेरा प्रिय भी है। मेरे उस परमप्रिय लेखक का नाम है प्रेमचंद। प्रेमचंद ने यहां तो निबंध और नाटक भी रचे, परंतु मुख्यत: उपन्यास और कहानीकार के रूप में एक महान लेखक, कला सम्राट जाने-माने जाते हैं। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि इन दोनों रूपों में इतने वर्षों बाद वे आज भी अजोड़ ओर कहानी-उपन्यास-कला-सम्राट बने हुए हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सका।
प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव लमही में सन 1880 में हुआ था। पिता पोस्ट ऑफिस के सामान्य कलर्क थे। उस पर बुढ़ापे में दूसरा विवाह रचा लेने की गलती कर बैठे थे। परिणामस्वरूप बचपन के सुकुमार क्षणों से ही इनको अनेक प्रकार के आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। ट्यूशन आदि करके इन्होंने पिता के बाद घर-परिवार का पालन भी किया और अपनी शिक्षा भी ज्यों-त्यों जारी रखी। इन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यास रचे और तीन सौ से अधिक कहानियां लिखीं। प्रतिज्ञा, वरदान, सेवासदन, निर्मला, गबन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, गोदान और मंगलसूत्र (अधूरा) आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। इनकी कहानियों के संकलनों के नाम हैं – प्रेम पचीसी, सप्त सरोज, प्रेम पूर्णिमा, प्रेम द्वादशी, प्रेम पीयूष, प्रेम प्रतिमा, पंच प्रसून, सप्त सुमन, प्रेम प्रमोद और प्रेम चतुर्थी आदि। इन कहानियों के संकलन आजकल अन्य कईं नामों से भी बाजार में उपलब्ध हैं।
हिंदी उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में इनका आगमन एक वरदान से कम महत्वपूर्ण नहीं माना गया। जैसा कि हम उनकी जीवनी में देख चुके हैं, प्रेमचंद ने जीवन की कटुताओं को निकट से देखा और भोगा था। अपने युग के समाज, धर्म, राजनीति के अनुभवों को संजोया था। इसी कारण उनके उपन्यास और कहानियां इतनी प्रभावशाली हैं कि पुराने होकर भी उनके कथानक, उनकी रचना-प्रक्रिया तथा अन्य तत्व हमेशा ताजे लगते हैं। इन सभी बातों ने भी उन्हें मेरा प्रिय लेखक या उपन्यासकार बना दिया है।
मेरे इस प्रिय लेखक को कोई तो यथार्थवादी कहता है और कोई आदर्शवादी, किंतु उन्होंने अपने आपको आदर्शोन्मुख यथार्थवादी ही कहा है। मेरे विचार में वे शुरू से अंत तक प्रमुख रूप से केवल मानवतावादी ही थे। मानवता के दर्द को ही उन्होंने अपनी सभी प्रकार की रचनाओं में संजोया है। मेरे इस मानवतावादी प्रिय लेखक का स्वर्गवास यद्यपि आज से कईं दशक पहले सन 1936 में ही हो गया था पर अपनी रचनाओं में वह आज भी जिंदा है और हमेशा रहेंगे। विश्व के चंद गिने-चुने अमर कहानिकारों में आज भी उनका स्थान अग्रगण्य बना हुआ है और हमेशा का रहेगा।
0 comments:
Post a Comment