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Friday, July 5, 2019

विद्यार्थी और अनुशासन vidyarthi aur anushashan hindi essay 500 words

July 05, 2019
विद्यार्थी और अनुशासन

नियमित अर्थात समाज, संस्था द्वारा निर्धारित या स्वंय उसके नियमों का पालन करते हुए जीवन जीने का प्रयत्न ही अनुशासन है। अनुशासन किसी वर्ग या आयु-विशेष के लोगों के ही नहीं, बल्कि सभी के लिए परम आवश्यक हुआ करता है। जिस जाति, देश और राष्ट्र-जनों में अनुशासन का अभाव रहता है, वे अधिक समय तक अपना अस्तित्व नहीं बनाए रख सकते। यदि किसी अन्य कारण से अस्तित्व बना भी रह जाए, पर अनुशासन के अभाव में स्वतंत्र सत्ता का बना रहना तो कदापि संभव नहीं हुआ करता है। इसलिए विद्यार्थी जीवन क्योंकि भविष्य के लिए तैयारी का समय माना जाता है। इस कारा अनुशासन का पालन उसके लिए और भी आवश्यक बल्कि परम आवश्यक हो जाया करता है। आज वह अपने जीवन को जिस प्रकार का बना लेगा, जिस सांचे में ढालने का प्रत्यन कर लेगा, कल वही सब उसकी सफलता-असफलता का मानदंड बन जाएगा।

‘अनुशासन’ शब्द ‘अनु’ उपसर्ग और ‘शासन’ शब्द के मेल से बना है। ‘अनु’ उपसर्ग का अर्थ होता है-पश्चात या साथ और ‘शासन’ का अर्थ है नियम या व्यवस्था। इस प्रकार जीवन और समाज में अपने घर-द्वार से लेकर विभिन्न और विविध क्षेत्रों के सुसंचालन के लिए जो नियम बनाए गए या बन गए हैं, जो व्यवसथांए निर्धारित की गई या सभ्य सामाजिकों के आपसी व्यवहारों से आप ही हो गई हैं, उनका पालन करना या उनके अनुसार चलना ही वास्तव में ‘अनुशसन’ हुआ करता है।  विद्यार्थी वर्ग का अनुशासनहीन होने का अर्थ है देश के वर्तमान और भविष्य दोनों का अपने लक्ष्यों से भटक जाना। इसे शुभ लक्षण नहीं कहा जा सकता। भारत जैसे विकासोन्मुख देश के लिए तो कदापि ही नहीं कहा जा सकता। इससे बचने की आवश्यकता है।

आज का विद्यार्थी या युवा वर्ग इतना अनुशासनहीन क्यों होता जा रहा है? प्रश्न करने पर उत्तर मिलता है कि वह जिस जीवन और समाज का अंग है, उसके अगुवा ही जब अनुशासन की धज्जियां उड़ा रहे हों, तब इस वर्ग से अनुशासन की आशा करना या मांग करना कोई अर्थ नहीं रखता। ऊपरी तौर पर निश्चय ही यह बात ठीक लगती है पर प्रश्न यह है कि तब अनुशासन की शुरुआत कहां से होगी? निश्चय ही जो आयु और व्यवहार के स्तर पर ढल चुके हैं, उनके द्वारा अब कुछ होने-हवाने वाला नहीं है। इसकी शुरुआत स्वैच्छा से विद्यार्थी और नवयुवा वर्ग को ही करनी होगी। ऐसा करने के लिए घर-परिवार और पूरे समाज से यदि उन्हें विद्रोह भी करना पड़, तो करना होगा।



जीवन के सामान्य व्यवहारों के स्तर पर हम पाते हैं कि आज का विद्यार्थी दूसरों की इच्छी बातों की नकल कर पाने में समर्थ नहीं रह गया। बुराईयों की नकल वह झटपट कर लेता है। उसके भटकाव और अनुशासनहीनता का मुख्य कारण यह फिसलन भरी मानसिकता ही है। होना यह चाहिए कि वह नीर-क्षीर विवेकी बनकर अच्छी बातों को सीखे, व्यर्थ की बातों की नितांत उपेक्षा करता जाए।  जीवन-समाज के व्यापक स्तर पर मान्य नियमों के अनुसार चलना ही अनुशासन है।

यह भी एक सत्य है कि आज का विद्यार्थी पहले से कहीं अधिक सजग, बुद्धिमान और भविष्य के प्रति जागरुक है।  विद्यार्थी के लिए सबसे बड़ा अनुशासन यही हो सकता है कि वह सभी प्रकार की व्यर्थ की बातों से दूर रहकर अपनी शिक्षा और शिक्षा-जगत के प्रति आस्थावान हो जाए। यह आस्था वस्तुत: उसके अपने व्यक्त्वि और उसके माध्यम से समूचे राष्ट्र बल्कि समूची मानवता के प्रति जागरुक होने की प्रतीक है। उसकी यह आस्था कोई कारण नहीं कि अन्यों को भी आस्था एंव अनुशासनवान न बना दे। आवश्यकता इन तथ्यों को समझकर जीवन में आज से आरंभ कर देने की है।

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