पुस्तकाल, अर्थात पुस्तकों का विशाल संग्रह या घर। पुस्तकों के आगार या भंडार को, या फिर उस स्थान विशेष को कि जहां अनेक विषयों से संबंधित सभी प्रकार की पुस्तकें एकत्रित या संकलित रहती है। परिभाषित प्रचलित शब्दावली में पुस्तकालय कहा जाता है। इस प्रकार हम किसी अच्छे पुस्तकालय को युग-युगों के संचित ज्ञान का भंडार भी कह सकते हैं। वहां सभी प्रकार की उपयोगी एंव ललित कलाआं से संबंधित पुस्तकें भी तो संकलित रहा करती हैं, अत: उन्हें हम ज्ञान के भंडार के साथ-साथ उपयोगी एंव ललित-कला साहिहत्य का भंडार भी कह सकते हैं।
ऊपर जिन तथ्यों का उल्लेख किया गया है, उनसे पुस्तकालय की उपयोगिता और लाभ अपने आप ही स्पष्ट है। वहां जाकर प्रत्येक रुचि वाला व्यक्ति अपनी हर प्रकार की जिज्ञासा को अपनी रुचित वाली पुस्तकें पढक़र शांत कर सकता है। पुस्तकें मनोरंजन का भी श्रेष्ठ साधन मानी जाती है, अत: पुस्तकालय को हम एक मनोरंजनगृह, एक प्रेक्षागृह भी कह सकते हैं, कि जहां पहुंचकर व्यक्ति पुस्तकों के माध्यम से बड़े मनोरंजक ढंग के जीवन व्यवहारों का प्रेक्षण (निरीक्षण) कर सकता है। पुस्तकालय हमें सभ्याचार भी सिखाते है, भिन्न रुचियों और लोगों से परिचित भी कराते हैं।
जहां पुस्तकालय होते हैं, वहां दैनिक समाचार-पत्र, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक और अन्य प्रकार के पत्र-पत्रिकांए आदि भी अवश्य रहा करते हैं। इन सबको अध्ययन हमें रोजमर्रा के जीवन और जीवन के ताजेपन से परिचित कराता रहता है।
पुस्तकालयों के दो रूप होते हैं-एक निजी पुस्तकालय और दूसरा सार्वजनिक पुस्तकालय निजी पुस्तकालय का लाभ कुछ गिने-चुने लोगों तक ही सीमित होकर रह जाता है। सार्वजनिक पुस्तमालय सबकी सांझी संपत्ति हुआ करते हैं। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति भी इन पुस्तकालयों में जाकर अपनी ज्ञान-पिपासा शांत कर सकता है। इस प्रकार पुस्तकालय आम आदमी को आर्थिक आलंबन भी देते हैं
पुस्तकालयों का एक और महत्व भी है। वहां अक्सर दुर्लभ पुस्तकों, पांडुलिपियों आदि का संकलन भी रहा करता है। शोध करने वाले छात्र एंव अन्य शोधार्थी लोग निश्चय ही इससे बहुत अधिक लाभांवित होते और हो सकते हैं। इस दृष्टि से पुस्तकालय को हम पुरातत्व का संग्राहक भी कह सकते हैं। इन्हीं सब बातों के कारण अत्यंत प्राचीन काल से ही पुस्तकों के संकलन या पुस्तकालय स्थापित करने की परंपरा रही है। पुराने जमाने में पहाड़ी कंदराओं तक में पुस्तकालय स्थापित किए जाते थे। आज तो उनकी आवश्यकता एंव महत्व और भी बढ़ गया है। आज विशाल भवनों में सभी दृष्टियों से उन्नत पुस्तकालय स्थापित हैं और नए-नए स्थापित हो रहे हैं। अब तो प्राचीन अलभ्य या दुर्लभ पुस्तकों, पांडुलीपियों के संरक्षण की गई वैज्ञानिक रीतियां भी विकसित कर ली गई हैं, ताकि उनमें संचित ज्ञान अगली पीढिय़ों के लिए सुलभ रह सके।
इस विवेचन-विश्लेषण से पुस्तकालय का महत्व स्पष्ट हो जाता है। हमें उनका अधिक से अधिक सदुपयोग करना चाहिए, दुरुपयोग नहीं। कुछ लोग-पुस्तकों में से मतलब के पृष्ट फाडक़र, पुस्तकों में गंदी चित्रकारी और गंदी बातें लिखकर उनका दुरुपयोग ही तो करते हैं। यह प्रवृति बड़ी घातक है। इससे बचे रहकर ज्ञान के भंडारों का उपयोग इस प्रकार से करना चाहिए कि वे दूसरों के लिए भी उपयोगी बने रह सकें। ऐसा होना हमारे प्रशिक्षित एंव सुसभ्य होने की पहचान माना जाएगा।
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