मेरा प्रिय लेखक Mera Priya lekhak hindi essay 810 words
यह सभी जानते और मानते हैं कि कवि और लेखक बनाने से नहीं बनते, बल्कि जन्मजात हुआ करते हैं। प्रकृति ही कुछ लोगों को ऐसी सृजन-प्रतिभा प्रदान करके जन्म दिया करती है, जिसके कारण साहित्य का उपवन हमेशा फूला-फला रहा करता है। हिंदी-साहित्य के आंगन में ऐसे अनेक लेखकर-रत्न जन्म ले चुके हैं कि जिनका लोहा आज भी सारा विश्व स्वीकार करता है और भविष्य में भी निरंतर करता रहेगा। मेरे विचार में महान और सदाबहार लेखक वही हुआ करता है, जिसकी लेखनी में मानवता की निरीहता का दर्द हमेशा गूंजकर पूरी मनुष्य जाति की अमर धरोहर बन जाता हो। निरीज मानवता की इच्छा-अकांक्षाओं को साहित्य के भिन्न रूपों में साकार करने वाला लेखक मेरे विचार में, हिंदी साहित्य में आत तक एक ही हुआ है और वही मेरा प्रिय भी है। मेरे उस परमप्रिय लेखक का नाम है प्रेमचंद। प्रेमचंद ने यहां तो निबंध और नाटक भी रचे, परंतु मुख्यत: उपन्यास और कहानीकार के रूप में एक महान लेखक, कला सम्राट जाने-माने जाते हैं। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि इन दोनों रूपों में इतने वर्षों बाद वे आज भी अजोड़ ओर कहानी-उपन्यास-कला-सम्राट बने हुए हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सका।
प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव लमही में सन 1880 में हुआ था। पिता पोस्ट ऑफिस के सामान्य कलर्क थे। उस पर बुढ़ापे में दूसरा विवाह रचा लेने की गलती कर बैठे थे। परिणामस्वरूप बचपन के सुकुमार क्षणों से ही इनको अनेक प्रकार के आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। ट्यूशन आदि करके इन्होंने पिता के बाद घर-परिवार का पालन भी किया और अपनी शिक्षा भी ज्यों-त्यों जारी रखी। गयिात में कमजोर होने के कारण बी.ए. बड़ी कठिनता और कईं वर्षों बाद पास कर सके। जीने के लिए स्कूल मास्टरी की, स्कूल निरीक्षक भी बने कुछ समय तक बंबई रहकर फिल्मों के लिए भी लिखा पर स्वभाव से स्वतंत्र और देश-प्रेमी होने के कारण कहीं टिक न पाए। बाद में प्रेस और पत्र का प्रकाशन किया और इस प्रकार सारा जीवन संकटों से जूझृे रहकर भी ऐसे साहित्य का सृजन करते रहे कि जो उदात्त मानवीय भावनाओं और मूल्यों के कारण अजर-अमर हैं। इन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यास रचे और तीन सौ से अधिक कहानियां लिखीं। प्रतिज्ञा, वरदान, सेवासदन, निर्मला, गबन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, गोदान और मंगलसूत्र (अधूरा) आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। इनकी कहानियों के संकलनों के नाम हैं – प्रेम पचीसी, सप्त सरोज, प्रेम पूर्णिमा, प्रेम द्वादशी, प्रेम पीयूष, प्रेम प्रतिमा, पंच प्रसून, सप्त सुमन, प्रेम प्रमोद और प्रेम चतुर्थी आदि। इन कहानियों के संकलन आजकल अन्य कईं नामों से भी बाजार में उपलब्ध हैं।
हिंदी उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में इनका आगमन एक वरदान से कम महत्वपूर्ण नहीं माना गया। एक आलोचक के शब्दों में उचित ही कहा जा सकता है कि ‘प्रेमचंद जी ने कहानी और उपन्यास को कोरी कल्पनाओं के क्षितिज से उतारकर जीवन के यथार्थ ऐव भोगे जा रहे धरातल पर प्रतिष्ठित किया। घटना के स्थान पर उसे चारित्रिक आयाम प्रदान किया और वायवी परिवेश के स्थान पर जीवन के यथार्थ पर्यावरण से संबलित किया।’ ऐसा करने के कारण ही स्वर्गीय प्रेमचंद मेरे साथ-साथ अन्य लाखों लोगों के भी चहेते एंव प्रिय लेखक बन सके। जैसा कि हम उनकी जीवनी में देख चुके हैं, प्रेमचंद ने जीवन की कटुताओं को निकट से देखा और भोगा था। अपने युग के समाज, धर्म, राजनीति के अनुभवों को संजोया था। जीवन के सारे जीवंत अनुभव उनकी रचनाओं में साकार देखे जा सकते हैं। इसी कारण उनके उपन्यास और कहानियां इतनी प्रभावशाली हैं कि पुराने होकर भी उनके कथानक, उनकी रचना-प्रक्रिया तथा अन्य तत्व हमेशा ताजे लगते हैं। प्रत्येक रचना में यथार्थ जीवन की धडक़न है और इसी कारण उन्हें बार-बार पढऩे पर भी मन ऊबता नहीं। अपनी रचनाओं में उनके पात्रों ने अपने अनुभवों के आधार पर स्थान-स्थान पर जो भविष्यवाणियां कही हैं, उनमें से अनेक आज लगातार सत्य प्रमाणित हो चुकी हैं और हो रही हैं। इन सभी बातों ने भी उन्हें मेरा प्रिय लेखक या उपन्यासकार बना दिया है।
मेरे इस प्रिय लेखक को कोई तो यथार्थवादी कहता है और कोई आदर्शवादी, किंतु उन्होंने अपने आपको आदर्शोन्मुख यथार्थवादी ही कहा है। मेरे विचार में वे शुरू से अंत तक प्रमुख रूप से केवल मानवतावादी ही थे। मानवता के दर्द को ही उन्होंने अपनी सभी प्रकार की रचनाओं में संजोया है। फिर उनकी भाषा-शैली भी इतनी सरल-सरस, रोचक और प्रभावी है कि सामान्य-विशेष सभी वर्गों के लोग उनकी रचनांए पढक़र समान रूप से भी भाव-विचार-सामग्री लेकर जीवन को सार्थक बना सकते हें। मेरे इस मानवतावादी प्रिय लेखक का स्वर्गवास यद्यपि आज से कईं दशक पहले सन 1936 में ही हो गया था पर अपनी रचनाओं में वह आज भी जिंदा है और हमेशा रहेंगे। मानवा के दुख-दर्द को बांटने और सजोने वाले भी कभी मरा नहीं करते हैं। नहीं, वे कभी भी नहीं मर सकते। विश्व के चंद गिने-चुने अमर कहानिकारों में आज भी उनका स्थान अग्रगण्य बना हुआ है और हमेशा का रहेगा।
यह सभी जानते और मानते हैं कि कवि और लेखक बनाने से नहीं बनते, बल्कि जन्मजात हुआ करते हैं। प्रकृति ही कुछ लोगों को ऐसी सृजन-प्रतिभा प्रदान करके जन्म दिया करती है, जिसके कारण साहित्य का उपवन हमेशा फूला-फला रहा करता है। हिंदी-साहित्य के आंगन में ऐसे अनेक लेखकर-रत्न जन्म ले चुके हैं कि जिनका लोहा आज भी सारा विश्व स्वीकार करता है और भविष्य में भी निरंतर करता रहेगा। मेरे विचार में महान और सदाबहार लेखक वही हुआ करता है, जिसकी लेखनी में मानवता की निरीहता का दर्द हमेशा गूंजकर पूरी मनुष्य जाति की अमर धरोहर बन जाता हो। निरीज मानवता की इच्छा-अकांक्षाओं को साहित्य के भिन्न रूपों में साकार करने वाला लेखक मेरे विचार में, हिंदी साहित्य में आत तक एक ही हुआ है और वही मेरा प्रिय भी है। मेरे उस परमप्रिय लेखक का नाम है प्रेमचंद। प्रेमचंद ने यहां तो निबंध और नाटक भी रचे, परंतु मुख्यत: उपन्यास और कहानीकार के रूप में एक महान लेखक, कला सम्राट जाने-माने जाते हैं। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि इन दोनों रूपों में इतने वर्षों बाद वे आज भी अजोड़ ओर कहानी-उपन्यास-कला-सम्राट बने हुए हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सका।
प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव लमही में सन 1880 में हुआ था। पिता पोस्ट ऑफिस के सामान्य कलर्क थे। उस पर बुढ़ापे में दूसरा विवाह रचा लेने की गलती कर बैठे थे। परिणामस्वरूप बचपन के सुकुमार क्षणों से ही इनको अनेक प्रकार के आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। ट्यूशन आदि करके इन्होंने पिता के बाद घर-परिवार का पालन भी किया और अपनी शिक्षा भी ज्यों-त्यों जारी रखी। गयिात में कमजोर होने के कारण बी.ए. बड़ी कठिनता और कईं वर्षों बाद पास कर सके। जीने के लिए स्कूल मास्टरी की, स्कूल निरीक्षक भी बने कुछ समय तक बंबई रहकर फिल्मों के लिए भी लिखा पर स्वभाव से स्वतंत्र और देश-प्रेमी होने के कारण कहीं टिक न पाए। बाद में प्रेस और पत्र का प्रकाशन किया और इस प्रकार सारा जीवन संकटों से जूझृे रहकर भी ऐसे साहित्य का सृजन करते रहे कि जो उदात्त मानवीय भावनाओं और मूल्यों के कारण अजर-अमर हैं। इन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यास रचे और तीन सौ से अधिक कहानियां लिखीं। प्रतिज्ञा, वरदान, सेवासदन, निर्मला, गबन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, गोदान और मंगलसूत्र (अधूरा) आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। इनकी कहानियों के संकलनों के नाम हैं – प्रेम पचीसी, सप्त सरोज, प्रेम पूर्णिमा, प्रेम द्वादशी, प्रेम पीयूष, प्रेम प्रतिमा, पंच प्रसून, सप्त सुमन, प्रेम प्रमोद और प्रेम चतुर्थी आदि। इन कहानियों के संकलन आजकल अन्य कईं नामों से भी बाजार में उपलब्ध हैं।
हिंदी उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में इनका आगमन एक वरदान से कम महत्वपूर्ण नहीं माना गया। एक आलोचक के शब्दों में उचित ही कहा जा सकता है कि ‘प्रेमचंद जी ने कहानी और उपन्यास को कोरी कल्पनाओं के क्षितिज से उतारकर जीवन के यथार्थ ऐव भोगे जा रहे धरातल पर प्रतिष्ठित किया। घटना के स्थान पर उसे चारित्रिक आयाम प्रदान किया और वायवी परिवेश के स्थान पर जीवन के यथार्थ पर्यावरण से संबलित किया।’ ऐसा करने के कारण ही स्वर्गीय प्रेमचंद मेरे साथ-साथ अन्य लाखों लोगों के भी चहेते एंव प्रिय लेखक बन सके। जैसा कि हम उनकी जीवनी में देख चुके हैं, प्रेमचंद ने जीवन की कटुताओं को निकट से देखा और भोगा था। अपने युग के समाज, धर्म, राजनीति के अनुभवों को संजोया था। जीवन के सारे जीवंत अनुभव उनकी रचनाओं में साकार देखे जा सकते हैं। इसी कारण उनके उपन्यास और कहानियां इतनी प्रभावशाली हैं कि पुराने होकर भी उनके कथानक, उनकी रचना-प्रक्रिया तथा अन्य तत्व हमेशा ताजे लगते हैं। प्रत्येक रचना में यथार्थ जीवन की धडक़न है और इसी कारण उन्हें बार-बार पढऩे पर भी मन ऊबता नहीं। अपनी रचनाओं में उनके पात्रों ने अपने अनुभवों के आधार पर स्थान-स्थान पर जो भविष्यवाणियां कही हैं, उनमें से अनेक आज लगातार सत्य प्रमाणित हो चुकी हैं और हो रही हैं। इन सभी बातों ने भी उन्हें मेरा प्रिय लेखक या उपन्यासकार बना दिया है।
मेरे इस प्रिय लेखक को कोई तो यथार्थवादी कहता है और कोई आदर्शवादी, किंतु उन्होंने अपने आपको आदर्शोन्मुख यथार्थवादी ही कहा है। मेरे विचार में वे शुरू से अंत तक प्रमुख रूप से केवल मानवतावादी ही थे। मानवता के दर्द को ही उन्होंने अपनी सभी प्रकार की रचनाओं में संजोया है। फिर उनकी भाषा-शैली भी इतनी सरल-सरस, रोचक और प्रभावी है कि सामान्य-विशेष सभी वर्गों के लोग उनकी रचनांए पढक़र समान रूप से भी भाव-विचार-सामग्री लेकर जीवन को सार्थक बना सकते हें। मेरे इस मानवतावादी प्रिय लेखक का स्वर्गवास यद्यपि आज से कईं दशक पहले सन 1936 में ही हो गया था पर अपनी रचनाओं में वह आज भी जिंदा है और हमेशा रहेंगे। मानवा के दुख-दर्द को बांटने और सजोने वाले भी कभी मरा नहीं करते हैं। नहीं, वे कभी भी नहीं मर सकते। विश्व के चंद गिने-चुने अमर कहानिकारों में आज भी उनका स्थान अग्रगण्य बना हुआ है और हमेशा का रहेगा।
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