स्वास्थ्य ही धन पर भाषण 2
आदरणीय प्राचार्य, अध्यापक एवं अध्यापिकाएं और मेरे प्यारे मित्रों को सुबह की नमस्ते। जैसा कि हम सभी यहाँ इस अवसर को मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं, मैं ‘स्वास्थ्य ही धन है’, विषय पर अपना भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। हम सभी ने इस सामान्य कहावत को अक्सर अपने बड़ों से सुना है कि, स्वास्थ्य ही धन है। लेकिन मैं आप सभी से पूछता/पूछती हूँ कि, आप में से कितने लोग इस उपाय का पालन करते हैं और कितने लोग इसका अनुसरण करने के बारे में सोचते हैं। हम सभी जानते हैं कि ‘स्वास्थ्य ही धन है’ क्या है, लेकिन हम में से कितने इसके वास्तिविक अर्थ को समझते हैं। आजकल, लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि, उनके पास स्वास्थ्य के रखरखाव, व्यायाम करने, परिवार के सदस्यों, मित्रों, पड़ौसियों आदि से बात करने तक का समय नही है, जिसका मुख्य कारण सामाजिक प्रतियोगिता और तकनीकियों के विकास का होना है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि, बिना स्वास्थ्य के हमारे जीवन में कुछ भी नहीं है। स्वास्थ्य किसी भी अन्य वस्तु से ज्यादा हमारे लिए मूल्यवान है क्योंकि यह सफलता का एकमात्र साधन है। अस्वस्थ लोग कभी भी जीवन में वास्तविक आनंद और सफलता को प्राप्त नहीं करते हैं। यह प्रसिद्ध कहावत हमें बताती है कि, पूरे विश्वभर में स्वास्थ्य धन और अन्य किसी भी कीमती वस्तु से भी ज्यादा कीमती है। यदि हम किसी बीमारी से पीड़ित होते हैं, तो धन केवल दवा खरीदने और कुछ राहत प्राप्त करने में मदद कर सकता हैं हालांकि, यह शरीर से पूरी तरह से बीमारी को खत्म नहीं कर सकता। यदि हमें एक बीमारी से राहत मिलती है तब यह दूसरी बीमारी को गुत्थी (उलझन) के रुप में छोड़ जाती है। इसका अर्थ यह है कि, कमजोर और अस्वस्थ शरीर बहुत सी बीमारियों को एक के बाद एक आमंत्रित करता रहता है, जिनसे हम कभी भी आजाद नहीं हो पाते।
हमें स्वंय को स्वस्थ और खुश रखने के लिए सरलता से जीवन की सभी समस्याओं के साथ सामना करने की जरूरत है। हम उचित और दैनिक व्यायाम, सुबह की सैर, स्वस्थ आहार, अच्छी आदतें, अनुशासित जीवन शैली और सकारात्मक सोच आदि के माध्यम से स्वस्थ हो सकते हैं। स्वस्थ शरीर - मन, शरीर और आत्मा को खुश और शांतिपूर्ण रखता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का शरीर और मन बीमारियों से पूरी तरह से मुक्त होता है और इस तरह वो जीवन के सभी स्थिर आनंद लेने में सक्षम हो जाता है। किसी भी आयु वर्ग के लोगों के लिए स्वस्थ होना भोजन, शारीरिक गतिविधि, प्रदूषण, नींद की आदतों, सोच का तरीका, मानसिक स्थिति, जल, वायु, धूप, आदि जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है। शारीरिक व्यायाम के साथ ही शरीर की उचित देखभाल भी बहुत आवश्यक है। अस्वस्थ लोग अपना पूरा जीवन बीमारियों से पीड़ित होकर या अन्य परिस्थितियों से शिकायतों में गुजार देते हैं। यदि इसे सही निर्देशों के अन्तर्गत जिया जाए तो जीवन बहुत ही सुदंर है। कृपया इसे बीमारियों से पीड़ित होकर नष्ट मत करो, इसके स्थान पर इसे खुशी के साथ जिओ। आज इस विषय पर भाषण देने का मेरा उद्देश्य हमारे भले के लिए आवश्यक स्थितियों पर केवल अपनी भावनाओं को आप सभी के साथ साझा करना था।
धन्यवाद।
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