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Sunday, May 12, 2019

जो हुआ अच्छा हुआ jo hua so achha hua 229 words

May 12, 2019
जो हुआ अच्छा हुआ
 विधाता की जब जैसी इच्छा हुआ करती है, तब तब मनुष्य को उसी प्रकार की लाभ-हानि तो उठानी ही पड़ती है। मान-अपमान भी सहना पड़ता है।

 एक व्यक्ति रात-दिन यह सोचकर परिश्रम करता रहता है कि उसका सुफल पाकर जीवन में सुख भेग और सफलता पा सकेगा, पर होता इसके विपरीत है। विधाता उसके किए-कराए पर पानी फेरकर सारी कल्पनांए भूमिसात कर देता है। एक उदाहरण से इस बात की वास्तविकता सहज ही समझी जा सकती है। एक किसान दिन-रात मेहनत करके फसल उगाता है। किंतु अचानक रात में अतिवृष्टि होकर या बाढ़ आकर उस सबको तहस-नहस करके रख देती है।

इसी प्रकार मनुष्य अच्छे-बुरे तरह-तरह के कर्म करता, कई प्रकार के पापड़ बेलकर धन-संपति अर्जित एंव संचित करता रहता है।। यह सोच-विचारकर मन ही मन बड़ा प्रसन्न भी रहता करता है कि उसे भविष्य के लिए किसी प्रकार की चिंता नहीं पड़ती। तभी अचानक कोई महामारी, कोई दुर्घटना होकर उसके प्राणों को हर लेती है और उसके भावी सुखों की कल्पना का आधार सारी धन संपति उसे सुख तो क्या देना उसके प्राणों की रक्षा तक नहीं कर पाती। इसमें भी तो विधाता की इच्छा ही मानी जाती है।


इस प्रकार यह मान्यता स्वीकार कर लेनी चाहिए कि आदमी के अपने हाथ में कुछ नहीं है। जो कुछ है, यह विधि के हाथ में ही है। वही विश्वकर्ता, भर्ता और हरता सभी कुछ है। 

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