प्रस्तावना
यह नीतिवचन मनुष्य को अपनी ज़रूरतों और इच्छाओं को सीमित करने की सलाह देती है क्योंकि इनका कोई अंत नहीं है। यदि हम अपनी हर इच्छा को पूरा करते हैं तो हम कभी भी संतुष्ट नहीं होंगे क्योंकि इनका कोई अंत नहीं है।
सादा जीवन व्यतीत करें - दूसरों को न प्रभावित करें
हम सभी इस बात से सहमत हैं कि जिन चीजों को हम चाहते हैं वे वास्तव में हमारे लिए नहीं हैं। हम चाहते हैं कि हम अपने पड़ोसियों, मित्रों और रिश्तेदारों को प्रभावित करें। इस तरह का जीवन कभी भी संतुष्टिपूर्ण या सुखद नहीं हो सकता है। इसका कारण यह है कि हम दूसरों को खुश करने या प्रभावित करने के लिए जन्म नहीं लेते हैं और ना ही हम ऐसा कभी भी कर सकते हैं। हम जो कुछ भी करते हैं उससे केवल लोगों को हमारे अंदर खामियां ढूँढ़ने के अवसर मिलते हैं और इससे हमें और अधिक असंतुष्टता होती है।
अब यह कहना सही नहीं है कि महत्वाकांक्षी होना और अच्छा जीवन जीने में कुछ खराबी है। यह सब हमारी जिंदगी में संतुष्टि ला सकता है लेकिन यह दूसरी चीजों से हमें बहुत दूर ले जाता है। हालांकि इस वजह से पेशेवर बड़ा रुतबा हासिल करने और अधिक से अधिक कमाई करने के लिए काम पर बहुत अधिक समय व्यतीत करते हैं और अपने माता-पिता, जीवन साथी और बच्चों को नज़रंदाज़ करते हैं। यह चीज़ उन्हें परिवार से उन्हें दूर करती है और उनके व्यक्तिगत संबंधों में परेशानी पैदा करती है और इससे केवल तनाव ही उत्पन्न होता है।
निष्कर्ष
अगर हम अपनी भौतिकवादी इच्छाओं को कम करते हैं और अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं तो हम अपने निजी और पेशेवर जीवन के बीच एक संतुलन बना सकते हैं। इस तरह हम अपने परिवार के साथ और अधिक से अधिक समय बिताने में सक्षम होंगे जिससे सच्चा आनन्द प्राप्त होता है। इससे हमारे पास स्वयं के लिए भी पर्याप्त समय होगा, अपना आंकलन करने का मौका मिलेगा और हमारे जीवन के सही उद्देश्य का पता लगाने का अवसर प्राप्त होगा।
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