विवाह एक सामाजिक संस्था
विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है। विवाह बिना समाज की कल्पना बिखर जाएगी और समाज पशुवत हो जाएगा। समाज मानव जाति के हजारों वर्षों के अनवरत प्रयत्नों, संघर्षों, उपलब्धियों, अविष्कारों आदि का परिणाम है। वह जंगल-दर्शन से हटकर समूह में रहने के लिए विवाह आवश्यक है। लेकिन आज विवाह अभिशाप बन रहा है क्योंकि इसे सामाजिक संस्था मानते हुए भी धर्मोन्मुखी बना हुआ है।
विवाह धर्म के आधार पर होते हैं। विवाह सनातन धम्र की रीति से होगा, इस्लाम धर्म की रीति से होगा, ईसाई धर्म की रीति से होगा। प्राय: होगा वह धर्म का चक्कर लगाकर ही। सरकारी विवाह अर्थात कोर्ट मैरिज बहुत कम होती है, यह बात अपने देश के वैवाहिक आंकड़ों को मद्देनजर रखते हुए सहज कही जा सकती है।
इस्लाम धर्म एक पुरुष के कई विवाह यानी बहुपत्नीवाद का समर्थन करता है और तलाक को पुरुष के सर्वथा अनुकूल बनाता है। इसमें स्त्रियों की स्वतंत्रता तथा समानता को खतरा पैदा होता है और वे आजीवन भयांशका में जकड़ी हुई पुरुष के अन्याय तथा अत्याचार को सहन करती है। इसी तरह हिंदू या सनातन रीति से होने वाले विवाह में दहेज सामने आता है जिससे कन्या पक्ष की स्थिति बहुत कमजोर हो जाती है ओर स्त्री जीवन सिसकता रहता है। सवाल उठता है कि दहेज क्यों? विवाह तो जीवन का स्वैच्छिक और मांगलिक स्वप्न है। उसमें लेन-देन कैसा? उसमें मोलतोल क्यों?
आज लोकतांत्रिक व्यवस्था है, समाजवादी समाज है, फिर नारी पर पाशविक अत्याचार क्यों? दहेज समाज की रीढ़ की हड्डी तोड़ रहा है।
आज वरवधुए जल रही हैं। यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि जलायी जा रही हैं। दहेज इसका मुख्य कारण है। जब व्यक्ति इतने जघन् य कृत्य पर उतर आया है तब कैसे सुखी समाज की स्थापना हो सकती है। इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
विवाह एक सामाजिक संस्था है और जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण उतसव से संबंध है। यह व्यक्ति-जीवन का सर्वाधिक मांगलिक पर्व हैं अज वह अभिशाप सिद्ध हो रहा है। इसका कारण है कि मानवीय ऊष्मा खत्म हो रही है और सौहार्द-प्रेम की सदप्रवृतियों का निरंतर तेजी से ह्रास हो रहा है। पत्नी को पति या उसके घर वाले दहेज के कारण मार दें, इससे वीभत्स और कुत्सित कर्म क्या हो सकता है? हालांकि सरकार ने दहेज को रोकने के लिए कानून बनाया है। उसने तस्करी रोकने के लिए कानून बनाया है।
यह सवाल मात्र सरकार से नहीं है। सब कुछ सरकार ही करेगी तो समाज क्या करेगा। इसके लिए समाज को पहल करनी चाहिए ओर इस अभिशाप से बचने के लिए सबको जी-तोड़ संघर्ष करना चाहिए तभी इस समरूा से समाज को मुक्ति मिल सकती है और एक स्वस्थ समाज की स्थापना संभव हो सकती है।
0 comments:
Post a Comment