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Sunday, May 12, 2019

जो हुआ अच्छा हुआ jo hua so achha hua 400 words hindi essay

May 12, 2019
जो हुआ अच्छा हुआ

 मनुष्य अच्छे-बुरे जैसे भी कर्म किया करता है, उसी प्रकार से उसे हानि-लाभ तो उठाने ही पड़ते हैं। उन्हें जान-सुनकर विश्व का व्यवहार भी उसके प्रति उसके लिए कर्मों जैसा ही हो जाया करता है, अर्थात अच्छे कर्म वाला सुयश और मान-सम्मान का भागी बन जाया करता है। लेकिन  कविवर तुलसीदास ने इस प्रचलित धारणा के विपरीत मत प्रकट करते हुए कहा है कि-

‘हानि-लाभ-जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।’ अर्थात जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य आनि-लाभ, यश-अपयश जो कुछ भी अर्जित कर पाता है। उसमें उसका अपना वश या हाथ कतई नहीं रहा करता है। विधाता की जब जैसी इच्छा हुआ करती है, तब उसे उसी प्रकार की लाभ-हानि तो उठानी ही पड़ती है। मान-अपमान भी सहना पड़ता है।

 एक व्यक्ति रात-दिन यह सोचकर परिश्रम करता रहता है कि उसका सुफल पाकर जीवन में सुख भेग और सफलता पा सकेगा, पर होता इसके विपरीत है। विधाता उसके किए-कराए पर पानी फेरकर सारी कल्पनांए भूमिसात कर देता है। एक उदाहरण से इस बात की वास्तविकता सहज ही समझी जा सकती है। एक किसान दिन-रात मेहनत करके फसल उगाता है। किंतु अचानक रात में अतिवृष्टि होकर या बाढ़ आकर उस सबको तहस-नहस करके रख देती है।

इसी प्रकार मनुष्य अच्छे-बुरे तरह-तरह के कर्म करता, कई प्रकार के पापड़ बेलकर धन-संपति अर्जित एंव संचित करता रहता है।। यह सोच-विचारकर मन ही मन बड़ा प्रसन्न भी रहता करता है कि उसे भविष्य के लिए किसी प्रकार की चिंता नहीं पड़ती। तभी अचानक कोई महामारी, कोई दुर्घटना होकर उसके प्राणों को हर लेती है और उसके भावी सुखों की कल्पना का आधार सारी धन संपति उसे सुख तो क्या देना उसके प्राणों की रक्षा तक नहीं कर पाती। इसमें भी तो विधाता की इच्छा ही मानी जाती है।


इस प्रकार यह मान्यता स्वीकार कर लेनी चाहिए कि आदमी के अपने हाथ में कुछ नहीं है। जो कुछ है, यह विधि के हाथ में ही है। वही विश्वकर्ता, भर्ता और हरता सभी कुछ है। उसी की इच्छा-अनिच्छा और लीला का परिणाम है। यह दृश्य जगत। इस का कण-कण उसी से संचालित हुआ करता है। उसी की इचछा से हवा चलती है। बादल बरसते हैं। चांद-सूर्य तारे क्रम से आते जाते हैं। वहीं, यश-अपयश, मान-सम्मान, आदि हर बात कर कर्ता और दाता है। इसी और संकेत करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा था अपना भला बुरा मेरे अर्पित कर दो। तुम केवल कर्तव्य कर्म मेरा ही आदेश मानकर करते जाओ। सो कवि का भी यहां यही आशय है कि हानि-लाभ, यश-अपयश आदि सभी को भगवान के हाथ में मानकर अपने कर्तव्यों का पालन करते जाओ बस।

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