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Sunday, May 12, 2019

अनेकता में एकता anekta mei ekta 200 words

May 12, 2019
अनेकता में एकता
                यूनान मिस्त्र रोमां सब मिट गये जहां से,
                अब तक मगर है बाकह नामो-निशां हमारा।।
इस कथन में दंभोक्ति नहीं है बल्कि हमारी सांस्कृतिक परम्परा का यर्थाथ है, जो  युगों-युगांे से स्वच्छ अविरल धारा के समान प्रवाहमान रही है और आगे भी रहेगी। 
                संस्कृति को परिभाषित करते हुए डाॅ. राधाकृष्णन ने लिखा है-’’संस्कृति विवके बुद्धि का, जीवन को भली प्रकार जान लेने का नाम है।   संस्कृति हमारा पीछज्ञ जन्म-जन्मांतरांे तक करती है। अपने यहां कहावत है, जिसका जैसा संस्कार होता है, उसका वैसा ही पुर्नजन्म होता है। संस्कार या संस्कृति असल में शरीर का नहीं, आत्मा का गुण है।
             हमें यह भी जानना चाहिए कि सभ्यता मनुष्य की भौतिक जीवन की उपयोगिता से संबंधित है और संस्कृति मानव की मानवता से। भारतीय संस्कृति वैविघ्यपूर्ण है। आर्य, यवन, यूनानी, शक, हूण, कुषाण, अरबवासी, तुर्क, मंगोल, अंग्रेज, फ्रांसीसी, डच आदि भारत आए। लेकिन सभी आक्रमणकारी अन्ततः भारतीय बन गए।
                भारत में अब भी अनेक जातियों है, अनेक बोलियां हैं। भारत को प्रायः भाषा का अजायबघर कहा जाता है। यहां लगभग 180 बोलियां बोली जाती हैं। इस सबके बावजूद भारतवासी एक हैं। भारत की समन्वय की भावना एकरूपता की भावना पर आधारित है। 
              वेदों में भी कहा गया है-’वसुधैव कुटुम्बकम’ तथा ’सर्वभूते हिते रतः। सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न अंगों में इस एकता का प्रतिबिम्ब नजर आता है। यह अनेकता में एकता विभिन्न सांस्कृतिक तत्वों में परिलक्षित होती है।
              भारत में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, यहूदी, जैन और बौद्ध आदि सामाजिक इकाइयां हैं, जिनके अपने-अपने सामाजिक आचार-विचार, जीवन-दर्शन, धार्मिक विश्वास, परम्परा और रीति-रिवाज हैं, फिर भी उनमें पारस्परिक संबंध उदार तथा सहिष्णु हैं। भारतीय समाज में एकरूपता का पुट है।

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