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Sunday, November 4, 2018

चित्तरंजन दास पर निबंध | Essay on Chittaranjan Das in Hindi 220 word

November 04, 2018








देशबन्धु की उपाधि से माने जाने वाले चितरंजन दास भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सैनानी थे । वह स्वभाव से विनम्र और अत्यंत ईमानदार इंसान थे।

वे एक यथार्थवादी नेता थे । देश के प्रति उनके अटूट प्रेम के कारण ही उन्हें देशबन्धु कहा जाता था । गांधीजी ने तो उन्हें धर्मपरायण, महान्, श्रेष्ठ, वफादार राष्ट्रभक्त माना ।



देशबन्धु चितरंजन दास आजादी के संघर्ष में अपना सक्रिय योगदान देने से पूर्व कलकत्ता में वकालत किया करते थे । हजार रुपये मासिक कमाई उस समय उन्हें वकालत से ही प्राप्त हो जाया करती थी । राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ते हुए सर्वप्रथम 1908 में उन्होंने अरविन्द घोष के मुकदमे की पैरवी करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ अपना मोर्चा खोला ।

उनकी पैरवी से हारकर अंग्रेज सरकार ने अरविन्द घोष को रिहा कर दिया । अंग्रेजों ने अरविन्द घोष को अलीपुर बमकाण्ड के अपराधी के रूप में गिरफ्तार किया था । गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन 1922 में स्थगित कर जाने पर वे काफी दुखी हुए थे । उन्होंने जनता में आजादी का उत्साह बनाये रखने के लिए इस आन्दोलन को जारी रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी ।

1922 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने । उन्होंने विधान परिषदों में प्रवेश करके सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने का परामर्श दिया । राजगोपालचारी तथा अन्य नेताओं द्वारा असहमत होने पर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया । 1923 में मोतीलाल नेहरू तथा अजमल खां के साथ मिलकर स्वराज्य पार्टी का गठन किया । कांग्रेस विरोधी होने के कई आरोप उन्होंने सहे । इन आरोपों का उत्तर देते हुए उन्होंने अपने स्वराज्य प्राप्ति के अभियान को ठण्डा नहीं पड़ने दिया ।

बंगाल में साम्प्रदायिक समस्या के विकराल होने का खतरा देखकर चितरंजन दास ने उसका बुद्धिमत्तापूर्ण समाधान कर दिया ।


देशबन्धु चितरंजन दास नैतिक कर्तव्य का पालन करने वाले, महान् मानवसेवी थे । उन्होंने मानव धर्म का निर्वाह करते हुए कई तंगहाल वकीलों को वकालत शुरू करवाने में कई बार सहायता की थी ।

एक बार तो अपने मित्र की जमानत के लिए काफी बड़ी रकम उन्हें अदा करनी थी, किन्तु इतनी बड़ी रकम चुकाने की असमर्थता के कारण अदालत ने चितरंजन और उनके पिता को दिवालिया घोषित कर दिया । अपनी प्रतिभा और कानून के गहरे ज्ञान के बल पर उन्होंने जब यह दिवालियेपन की आज्ञा रद्‌द करवायी, तो सारे देश में उनकी धाक जम गयी ।


देशबन्धु चितरंजन दास अपने सिद्धान्तों के पक्के, मानवतावादी धर्म के पक्षधर एवं सच्चे राष्ट्रभक्त थे । भारतवर्ष देश व समाज को दिये गये उनके योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद रखेगा । 1925 में ऐसी महान् आत्मा पंचतत्त्व में लीन हो गयी ।


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