प्रस्तावना:- ग्लोबल वार्मिंग हमारे देश की नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए बहुत बड़ी समस्या है और यह धरती के वातावरण पर लगातार बढ़ रही है इस समस्या से ना केवल मनुष्य, धरती पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी को नुकसान पहुंचा रहे हैं और इस समस्या से निपटने के लिए प्रत्येक देश कुछ ना कुछ उपाय लगातार कर रहा है परंतु यह ग्लोबल वार्मिंग घटने की वजह निरंतर बढ़ ही रहा है ग्लोबल वार्मिंग के सबसे बड़े जिम्मेदार स्वयं मानव ही है .बढ़ती हुई औधोगिक गतिविधियां, मशीनीकरण और आधुनिकीकरण की वजह से हर तरफ लगातार ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है मनुष्य की इन गतिविधियों से खतरनाक गैस कार्बन डाइऑक्साइड ,मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड,इत्यादी का ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में वातावरण में बढ़ोतरी हो रही है।
ग्लोबल वार्मिंग की परिभाषा:– ग्लोबल वार्मिंग इंग्लिश भाषा का शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ हुआ ग्लोबल यानी पूरी धरती और वार्मिंग होना। धरती के वातावरण में तापमान के लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग का प्राकृतिक कारण:- ग्लोवल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसे हैं ग्रीन हाउस गैस बे गेसे होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मि यां उष्मा को अपने अंदर सोख लेती है ग्रीन हाउस गैसों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण गैस कार्बन डाइऑक्साइड है जिसे हम जीवित प्राणी अपने सास के साथ उत्सर्जन करते हैं पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी में वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहां का तापमान बढ़ाने में कारक बनती है कार्बन डाइऑक्साइड, वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन इसी तरह चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में हमारे पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे दुनिया के कई हिस्सों में बर्फ की चादर बिछी जाएगी।
इससे पहाड़ो पर जमी बर्फ पिघलनी शुरू हो जाएगी जिस से समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा ,समुद्र की इस तरह जलस्तर बढ़ने से दुनिया के कई हिस्से जल में लीन हो जाएंगे भारी तबाही मचेगी यह किसी विश्वयुद्ध या किसी उल्का पिंड पृथ्वी से टकराने से होने वाली तवाही से भी ज्यादा भयानक तबाही होगी ।
ग्लोबल वार्मिंग का मानवीय कारण
ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार अधिकांश कारक मानव के द्वारा किए गए निर्मित कार्य जिसका परिणाम विनाशकारी है। मानव विकास और प्रगति की अंधी दौड़ में प्रकृति से दूर होता जा रहा है।
नदियों की धाराओं को अवरुद्ध किया जा रहा है हमारी खुशी और संसाधनों को इकट्ठा करने के लिए पेड़ और जंगलों को नष्ट किया जा रहा है उद्योगिक क्रांति की वजह से कोयले ,तेल,और करोड़ों वाहनों के चलाने की वजह से बहुत प्रदूषण हो रहा है जिससे हमारी पृथ्वी असामान्य रूप से गर्म होती जा रही है इसके कुछ अन्य कारन भी है जैसे के वनों की कटाई, औधोगिकरण, शहरीकरण और वायुमंडल में हानिकारक गैसों में वृद्धि।
ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण विकसित देश है इसका रवैया लगातार व्यवधान उत्पन्न करता है संयुक्त राज्य अमेरिका और बहुत से अन्य विकसित देश इस समस्या के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है क्योंकि विकासशील देशों की अपेक्षा उनके देश की कार्बन उत्सर्जन की प्रति दर 10 गुना अधिक है लेकिन अपना और औद्योगिक प्रकृति बनाए रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की इच्छुक नहीं है, वहीं दूसरी ओर भारत ,चीन ,जापान जैसे विकासशील देशों का मानना है कि वह भी विकास की प्रक्रिया में है ,इसलिए वह कार्बन उत्सर्जन को कम करने का रास्ता नहीं अपना सकते हैं इसलिए विकसित देशों को भी थोड़ा सामंजस्य बनाकर अपने पृथ्वी की सुरक्षा समझ कर कार्य करना चाहिए।
उपसंहार
ग्लोवल वार्मिंग मानव के द्वारा ही विकसित प्रक्रिया है क्योंकि कोई भी परिवर्तन बिना किसी चीज को छुए अपने आप नहीं होता है इसलिए जिस प्रकार हम ग्लोबल वार्मिंग को नुकसान पहुंचा रहे हैं उसी प्रकार हम मानव को मिलकर इस पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग से बचाना जरुरी है ।नहीं तो इसका भयंकर रूप हमें आगे देखने को मिलेगा जिसमें शायद पृथ्वी का अस्तित्व ही ना रहे ।और पृथ्वी खत्म हो जाए इसलिए हम मानव को सामंजस्य , बुद्धि और एकता के साथ मिलकर सभी देशों को इसके बारे में सोचना चाहिए या फिर कोई उपाय ढूंढाना अनिवार्य है नहीं तो जिस ऑक्सीजन को लेकर हमारी सांसे चलती है वही सांसे इस खतरनाक गैसों की वजह से कहीं थमने ना लगे। इसलिए तकनीकी ओर आर्थिक आराम से ज्यादा अच्छा प्राकृतिक सुधार जरुरी है।
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