रबिन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध-Essay On Rabindranath Tagore In Hindi
रविन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई , 1861 को कलकत्ता में हुआ था। इनका पूरा नाम रविन्द्र नाथ ठाकुर था। इनके पिता का नाम देबेन्द्रनाथ टैगोर था और माता का नाम सारदा देवी था। इनका जन्म कलकत्ता के एक धनी परिवार में हुआ था। रविन्द्र नाथ जी की अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई थी। रविन्द्र नाथ जी को संस्कृत , बंगला , अंग्रेजी , चित्रकला और संगीत की शिक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापकों को घर पर ही नियुक्त किया गया था।
सन् 1868 से सन् 1874 तक इन्होने स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1874 के बाद इनकी स्कूली शिक्षा बंद हो गई थी। 17 साल की उम्र में वकालत की पढाई के लिए इन्हें इनके भाई के साथ इंग्लेंड भेजा गया था। वहां पर इन्होने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कुछ समय तक अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की थी।
रविन्द्र नाथ टैगोर जी का विवाह 9 दिसम्बर , 1883 को मृणालिनी देवी से हुआ था। 13 वर्ष की उम्र में उनकी सबसे पहली कविता पत्रिका में छपी थी। टैगोर जी एक दार्शनिक , कलाकार और समाज सुधारक भी थे। कलकत्ता के निकट इन्होने एक स्कूल की स्थापना की थी जो आज विश्व भारती के नाम से बहुत प्रसिद्ध है।
इन्हें अभिनय और चित्रकला का बड़ा शौक था। ये दर्शनशास्त्र से भी बहुत अधिक लगाव रखते थे। रविन्द्र नाथ जी सन् 1905 तक एक बहुत बड़े कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गये थे। रविन्द्र नाथ जी ने अनेक कविताएँ , लघु कहानियाँ , उपन्यास , नाटक और निबन्ध लिखे थे। इनकी सभी रचनाएँ सर्वप्रिय हुई थीं। इनकी बहुत सी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया जा चुका है। रविन्द्र नाथ जी ने सन् 1877 तक अनेक रचनाएँ की थीं जिनका प्रकाशन अनेक पत्रिकाओं में हुआ था।
रविन्द्र नाथ टैगोर जी को विश्वविख्यात साहित्यकार , चित्रकार , पत्रकार , अध्यापक , तत्वज्ञानी , संगीतज्ञ , दार्शनिक , शिक्षाशास्त्री के रूप में आज भी याद किया जाता है। रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने बंगाल में नवजागृति लाने में अपना एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
रविन्द्र नाथ जी ने भारत देश के नाम को पूरी दुनिया में अमर कर दिया था। उनका विश्व साहित्य के योगदान अद्वितीय है वे एक ऐसे प्रकाश स्तम्भ थे जिन्होंने अपने प्रकाश से पुरे संसार को आलोकित किया था।
रविन्द्र नाथ जी सन् 1906 में गठित राष्ट्रिय शिक्षा परिषद से जुड़े जिसमें उन्होंने शिक्षा के सुधार के विषय में अच्छी सलाह सरकार तक पहुंचाई थी। सन् 1907 में वे बंगीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में चुने गये थे। रविन्द्र नाथ जी एक सच्चे और महान देशभक्त भी थे।
सन् 1905 के बंग-भंग के दौरान वे विभिन्न आंदोलनों में भाग लेते रहे थे। जब सन् 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था तो उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दी गई सर की उपाधि को वापस लौटा दिया था। स्वदेशी आन्दोलन में उनकी भूमिका बहुत ही सक्रिय रही थी।
रविन्द्र नाथ टैगोर जी विश्व कवि ही नहीं थे वे देश और मानवता के पुजारी भी थे। रविन्द्र नाथ जी एक चित्रकार , संगीतज्ञ , पत्रकार , अध्यापक , दार्शनिक , शिक्षाशास्त्री , महान प्रकृति प्रेमी और साहित्यकार भी थे। रविन्द्र नाथ जी साहित्यकार व्यक्तित्व में विशेषता यह थी कि उनकी अधिकांश रचनाएँ बंगला में ही लिखी गई थीं।
सन् 1892 में रविन्द्र नाथ जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता , घरेलू उद्योंगों के विषयों पर बहुत ही गंभीर लेख लिखे थे। इसी के साथ ही उनका कविता लेखन भी चलता रहा था। सन् 1907 से पहले उनका गोरा नामक उपन्यास प्रकाशित हो गया था। अपनी पत्नी के देहांत से पहले उन्होंने गीतांजली नामक ग्रन्थ की रचना कर दी थी और उसका अंग्रेजी अनुवाद भी कर दिया था।
रविन्द्र नाथ जी ने कहानियां , नाटक , उपन्यास , निबंध और कविताएँ भी लिखी थीं। उन्होंने अपनी रचनाओं में मानवीय दुखों और निर्बलताओं को बहुत ही कलात्मक ढंग से लिखा है।
टैगोर जी एक महान शिक्षाशास्त्री थे। रविन्द्र नाथ जी ने शिक्षा को विकास की प्रिक्रिया माना है और उसे मनुष्य के शारीरिक , बौद्धिक , आर्थिक , व्यावसायिक तथा आध्यात्मिक विकास का आधार माना है।
रविन्द्र नाथ जी की साहित्य सेवाओं के लिए सन् 1913 में उन्हें विश्व के सर्वोत्तम सम्मान नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
रविन्द्र नाथ जी की मृत्यु 7 अगस्त , 1941 को कलकत्ता में किडनी इंफेक्शन की वजह से हुई थी।
महान व्यक्तित्व केवल अपनी प्रगति तक सिमित और संतुष्ट नहीं रहते हैं। उनक ध्येय पूरी मानव जाति के कल्याण से होता है। आज के समय में जब भी राष्ट्रगान के मधुर स्वर कानों में पड़ते हैं तो सभी को कविगुरु रविन्द्र नाथ जी की याद आ जाती है। भारत के इतिहास में रविन्द्र नाथ जी को युगों तक याद किया जायेगा।
रविन्द्र नाथ जी का जीवन साहित्यकार , शिक्षाशास्त्री , अध्यापक और एक दार्शनिक के रूप में देश के लोगों को प्रेरणा देता रहेगा। गाँधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने दी थी।
उन्होंने शांतिनिकेतन के रूप में राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि पुरे संसार के लिए अपनी एक विरासत छोड़ी है। रविन्द्र नाथ जी ने सामाजिक और सांस्कृतिक धरातल पर जन जागरण और सेवा का क्षेत्र अपनाया और साहित्य सृजन से इस भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति भी की थी।
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