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Wednesday, November 14, 2018

यदि मैं वैज्ञानिक होता if i am a scientist

November 14, 2018
यदि मैं वैज्ञानिक होता
आज के युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है। इस युग में किसी व्यक्ति का वैज्ञानिक होना सचमुच बड़े गर्व और गौरव की बात है। वैसे तो अतीत-काल में भारत ने अनेक महान वैज्ञानिक पैदा किए हैं और आज भी विश्व-विज्ञान के क्षेत्र में अनेक भारतीय वैज्ञानिक क्रियाशील हैं। अपने तरह-तरह के अन्वेषणों और आविष्कारों से वे नए मान और मूल्य भी निश्चय ही स्थापित कर हरे हैं। फिर भी अभी तक भारत का कोई वैज्ञानिक कोई एसा अदभुत एवं अपने-आप में एकदम नया अविष्कार नहीं कर सका, जिससे भारत को ज्ञान-योग के क्षेत्रों को समान विज्ञान के क्षेत्र का भी महान एवं मार्गदर्शक देश बन पता। इसी प्रकार के तथ्यों के आलोक में अक्सर मेरे मन मस्तिष्क में यह आन्दोलन होता रहा है कि यदि मैं वैज्ञानिक होता?
यदि मैं वैज्ञानिक होता, तो इस क्षेत्र में नवीन से नवीन तकनीकों के उद्घाटन का प्रयास करता, ताकि भारत वह मान-सम्मान प्राप्त कर सकें जिसका कि वह अतीत काल में न केवल दावेदार बल्कि सम्पुरंणतः अधिकारी रहा है। में आर्याभट्ट और वराहमिहिर जैसे नक्षत्र-वैज्ञानिकों की परम्परा को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास करता, ताकि मानवता के भाग्य एवं मस्तक की रेखाओं को अपनी इच्छा से नए ढंग से लिखा जा सके। मैं इस प्रकार की वैज्ञानिक खोजों और अविष्कार करता कि जिस से मानव-जाति का वर्तमान तो प्रगति एवं विकास करता हुआ सुखी-समृद्ध बन ही पता, भविष्य भी हर प्रकार से सुरक्षित रह सकता। मनुष्य-मनुष्य के दुःख-दर्द का कारण न बनकर उसके आंसू पौंचकर उसकी वास्तविक उन्नति में सहायक बन पता।
यह सभी जानते हैं कि निहित स्वार्थों वाले छोटे-बड़े अनेक देश आज विज्ञान की गाय के दुधारू स्तनों से जोंक की तरह चिपककर उसका और उसके साथ-साथ सारी मानवता का भी रक्त-चूसकर अपने निहित स्वार्थ पूर्ण करने पर तुले हुए हैं। इस तरह के देश और उनके वैज्ञानिक उचित-अनुचित प्रत्येक उपाय एवं साधनों से वे सारे संसाधन प्राप्त करने की चेष्टा करते रहते है की जिनके द्वारा घातक और हर तरह के घातक शास्त्रों का निर्माण संभव हुआ करता है। ऐसे देशों और लोगों के लिए नि:शस्त्रीकरण जैसे मुद्दों और संचियों का कोई अर्थ, मूल्य एवं महत्व नहीं है और न कभी हो ही सकता है। वे तो दुस्त्रों का सर्वनाश करके भी अपने स्वार्थ पूर्ण करने पर आमादा है। यदि में वैज्ञानिक होता, तो किसी एसी वस्तु या उपायों के अनुसन्धान का प्रयास करता कि इस प्रकार के देशों-लोगों के इरादों का मटिया -मेट कर सके। उनके सभी साधनों और निर्माण को भी वहीँ प्रतिबंधित कर एक सीमा से आगे बढ़ पाने का भी कोई अवसर ही न रहने देते।
आज विश्व के सामने कई प्रकार की विषम समस्याएं उपस्थित हैं। बढती जनसँख्या और उसके भरण-पोषण करने वाले संसाधनों के निरंतार कम होते स्त्रोत, महंगाई, बेरोजगारी, बेकारी, भूख-प्यास, पानी का आभाव कम होते उर्जा के साधन और निरंतार सूखते जा रहे स्त्रोत, पर्यावरण का दूषित होना, तरह-तरह के रोगों का फूटना, अधिक वर्षा-बाढ़ या सूखे पड़ने के रूप में प्रकृति का प्रकोप; इस तरह आज के उन्नत और विकसित समझे जाने वाले मानव-समाज के सामने भी तरह-तरह की विषम समस्याएँ उपस्थित हैं। यदि मैं वैज्ञानिक होता, तो निश्चिय ही इस प्रकार की समस्याओं से मानवता को मुक्ति दिलाने के उपाय करने में अपनी सारी प्रतिभा और शक्ति, समय लगा देता। मेरा विश्वास पहले से ही अनेक कारणों से दुखी मानवता के तन पर और घावों के लिए मरहम खोजकर उन पर लगाने में हैं; ताकि सभी प्रकार के घाव सरलता से भर सकें।
यदि में वैज्ञानिक होता, तो हर प्रकार से शांतिपूर्ण कार्यों के लिए ज्ञान-विज्ञान के साधनों का उपयोग करने का आदर्श विश्व-विज्ञानिक-समाज के सामने प्रस्थापित करता ताकि उससे प्रभावित होकर छोटी-बड़ी सभी वैज्ञानिक प्रतिभाएँ शांतिपूर्ण कार्यों को प्रोत्साहन देने की दिशा में उन्मुख हो पाती। विश्व के सामने आज तो अन्न-जल के आभाव का संकट है, कल-कारखाने चलाने के लिए बिजली या उर्जा का संकट है। वैज्ञानिक होने पर मैं इन जैसी अन्य सभी समस्याओं से संघर्ष करने का मोर्चा खोल देता, ताकि मानवता को इस प्रकार की समस्याओं से निजत दिलाया जा सके। इसी प्रकार आज विश्व के युवा वर्गों के सामने बेरोज़गारी की बहुत बड़ी समस्या उभरकर कई प्रकार की अन्य बुराईयों की जनक बन रही है। यदि मैं वैज्ञानिक होता, तो इस प्रकार के प्रयास करता कि रोजगार के अधिक सेअधिक अवसर सुलभ हो पते। हर काम करने के इछुक को इच्छानुसार कार्य करने का अवसर एवं साधन मिल पता। फलत: अन्य प्रकार की बुराईयों का स्वत: ही परिहार हो जाता।
वैज्ञानिक बनकर मैं मानवता का उद्धार और विस्तार करना चाहता हूँ, न कि नाम और यश कमाना।

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