प्रस्तावना
दिवाली हिंदु धर्मके सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। यह त्योहार हमेशा से ही काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन घरो तथा दुकानों को प्रकाश, मोमबत्ती और दिपों को प्रकाशित करके सजाया जाता है।लोग देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए उत्सव से पहले अपने घरों की साफ-सफाई करना शुरू कर देते हैं।
इस दिन चारों ओर खुशी, उमंग देखने को मिलता है। परन्तु इस त्यौहार पर एक ऐसी परम्परा का चलन आजकल बड़ा गया है जिसके कारण हम सभी लोगो और इस वायुमंडल के परेशानी भी खड़ी हो जाती है। इस त्यौहार में आजकल लोग खूब पटाखे जलाते है जिसकी वजह से प्रदुषण बहुत बढ़ जाता है और जीवित प्राणियों के लिए कई सारी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
दिवाली पर होने वाले प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव
दीवाली पर पटाखे जलाने से उत्पन्न होने वाला धुएं वायु में मिलकर वायु प्रदूषण के स्तर और मात्रा को बढ़ाता है। यह पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यह त्योहार सर्दी के मौसम की शुरुआत से पहले आता है। इस समय के आसपास वातावरण धुंध भरा रहता है। पटाखों द्वारा उत्पन्न धुआं धुंध में मिल जाता है और प्रदूषण के प्रभाव को और भी ज्यादाबढ़ा देता है।
जैसे-जैसे प्रदूषण का स्तर बढ़ता है, मानव स्वास्थ्य पर भी इसका काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। हवा नकरात्मक प्रदूषको से भर जाती है, जिसके कारण लोगो में श्वास लेने में समस्या, फेफड़ो का जाम होना, आँखों में जलन महसूस होना, आँखों का लाल होना और त्वचा संबंधित बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। वह लोग जो पहले से ही अस्थमा और ह्रदय रोग जैसी बीमारियों से पीड़ीत होते हैं, वह पटाखे जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण से सबसे बुरे तरीके से प्रभावित होते है। ध्वनि प्रदूषण के कारण भी दिवाली का खुशनुमा त्योहार दुखदायी बन जाता है। पटाखों द्वारा उत्पन्न शोर-शराबे के कारण लोगो में बहरेपन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
मनुष्यों के तरह ही दिवाली के उत्सव के दौरान बढ़े हुए वायु प्रदूषण के कारण जानवरों को भी कई तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनके लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है और इसके साथ ही अन्य कई तरह के बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही पटाखों द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण भी उनपर कई नकरात्मक प्रभाव पड़ते है। यह मासूम प्राणी पटाखों के फूटने के दौरान उत्पन्न होने वाले तेज आवाज से बचने के लिए डर के मारे इधर-उधर भागते हुए देखे जाते है।
दिवाली पर प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय
बच्चे पटाखों को जलाने को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुक होते है। बच्चे दिवाली के एक दिन पहले से ही पटाखे जलाना शुरु कर देते है। इसके लिए अभिभावको को बच्चों को इस मुद्दे के प्रति जागरुक करना चाहिए और उन्हे इसके नकरात्मक प्रभावों के बारे में बताना चाहिए। आजकल के बच्चे काफी समझदार है और इस बात को समझाने पर वह अवश्य समझ जायेंगे की हमें पटाखे क्यों नही जलाने चाहिए।
सरकार को भी इसके लिए सख्त कदम उठाना चाहिए और पटाखों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यह दिवाली पर उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने का यह सबसे कारगर तरीका साबित हो सकता है। अगर यह संभव ना हो तो कम से कम पटाखों के उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता को पुनः विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि जो पटाखे काफी ज्यादा मात्र में वायु और ध्वनि प्रदूषण फैलाते हो, उन्हे आवश्यक रुप से प्रतिबंधित किया जा सके ।
यदि बच्चे जिद्द करे तो उन्हें केवल वो ही पटाखे दिलवाये जो ज्यादाधुआँ और तेज आवाज ना करते हो।
निष्कर्ष
हमें एक जिम्मेदार नागरिक के तरह व्यवहार करना चाहिए और पटाखे जलाने का बहिष्कार करना चाहिए। हमें लोगो को प्रेरित करना चाहिए के दिवाली दीपों का त्यौहार है तो केवल दीप जलाकर मनाये। साथ ही सुनिश्चित करे के यदि लोग पटाखे जलाये तो सामूहिक रूप से एक जगह पर इकट्ठे होकर जलाये ताकि एक ही स्थान पर सभी लोग सभी तरह की आतिशबाजी देख सके। इस से पटाखों का इस्तमाल की मात्रा बहुत हद्द तक नियंत्रित हो जाएगी। जब हमें समझना होगा की पटाखे जला त्योहार की ख़ुशी नही है बल्कि प्रदूषण को बढ़ावा देते है,
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